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4 जैन रहस्यवाद
व्यक्ति मोर सृष्टि के सर्जक तत्वों की क्षमा एक राजा और संभवतः इसीलिये विन्तको प्रोर भोपकों में यह विवम विवादास्पद माया है अनुभव के माध्यम से किसी सस्य मोर परम माराध्य को मोबना मी मुनगाल । इस मूलप्रवृत्ति की परिपूर्ति में साधक की जिज्ञासा मोर सर्वप्रथाम बुद्धि विनोकदान देती है । यहीं से दर्शन का जन्म होता है। .
इसमें साधक स्वय के मूल रूप में केन्द्रित साध्य की प्राप्ति का सनिलित लक्ष्य निर्मित कर लेता है। साध्य की प्राप्ति काल में व्यक्तित्व का होता है पौर इस म्यक्तिस्व की सर्जना में पध्यात्म चेतवा का प्रमुख हाप सहन है।" मानव स्वभावतमा सृष्टि के रहस्य को जानने का
। उसके मन मे सदेव यह बिज्ञासा बनी रहती है कि इस दृष्टि का पता कौन है? . शरीर का निर्माण कैसे होता है ? शरीर के अन्दर मह कोन सी कि है कि मस्तिस्य से उसमें स्पंदन होता है और जिसके प्रभाव में उस संवा को को ही पाता है। यदि इस शक्तिको पात्मा वा ब्रह्म कहा गाय को मिला भनित्य ? उसके निस्थल पवा नित्यरव की स्थिति में कार्य
और कामों से मुक्ति पाने पर उस पतिका स्याम यादव है और इन प्रश्न बिरहो करसमापान जन-सिखात में सात सुनो और समय ने अनेकान्तबम्ब का पाप लेकर किया गया है। .. ... ..'
इस यहाबाद की दुरी पोषण में हर में विजिलो है और उन.प्रयासों का एक विशेष प्रतिमा बनाया है। हमारीमा पर वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल कपानिकों ने इन पलों पर मनन किया है और उसका निकर्ष यो के पृष्ठों पर किस किया है।मनियार 'काम में इस स्वार पर प वार प्रारम्भ और परिणाम पकानान मन्त्र भारतीय वनों में
वापि इसका इतिहास लगाये