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संचन का अध्ययन पत्ता हैं इसे हम निम्नलिखित वर्गीकरण के माध्यम से बन सकते हैं
1. भौतिक अध्ययन-
वाहति, जलवायु, समुद्री विज्ञान आदि इसके अन्त गंधाता है।
2. प्रियन इसमें कृषि, प्रौद्योगिक, व्यापार, यातायात, पर्यटन माता है ।
3. सामाजिक सांस्कृतिक अध्ययन -- इसमें जनसंख्या, अधिवास ( बसती, नवरीय, राजनीतिक, प्रादेशिक, सैनिक प्रादि का अध्ययन होता है ।
4. अन्य साखायें जीव (वनस्पति), चिकित्सा मान चित्रकला आदि का storeन होता है ।
जैन भूगोल यद्यपि पौराणिकता को लिए हुए है फिर भी उसका यदि हम afferrer करें तो हम व्यावहारिक भूगोल के उपर्युक्त अध्ययन प्रकरणों से सम्बद्ध सामग्री को प्रासानी से खोज सकते हैं । इस दृष्टि से यह एक स्वतंत्र शोध-प्रबंध का विषम 1
जैसा हमने पहले कहा है जन-भूगोल प्रश्न चिह्नों से दब गया है । प्राधुनिक भूगोल से वह निश्चित ही समग्र रूप से मेल नहीं खाता, इसका तात्पर्य यह नही कि जैन भूगोल का समूचा विषय अध्ययन और उपयोगिता के बाहर है । इस परिस्थिति में हमारा मध्ययम वस्तुपरकता की मांग करता है । धुनिक श्रद्धा को वैज्ञानिक अन्वेषणों के साथ यदि हम पूरी तरह न जोड़ें और तब तक एक जायें जब तक उन्हें स्वीकार न कर ले तो हम उन्मुक्त मन उनके आयामों को परिधि के भीतर रख सकते हैं।
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दोनों पहलुओं को और
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जम्बूद्वीप तीनों संस्कृतियों में स्वीकार किया गया है भले ही उसकी सीमा विषय में विवाद रहा हो। जैन संस्कृति में तो इसका वर्णन इतने अधिक विस्तार से मिलता है जितना जैनेतर साहित्य में नहीं मिलता। पर्गत गुफा, नदी, ख देश, नगर प्रादि का वरन पाठक को हैरान कर देता है। इसका प्रथम
और समवायांग में मिलता है। इन दोनों यों के माप सूर्य प्रज्ञप्ति मौर चन्द्र प्रज्ञप्ति की रचना हुई हैं। इनकों की शताब्दी' की रचना कह सकते हैं। प्राचार्य विक्रम की वियोग पुण्याति भी इसी समय के भासपास की रचना होनी चहिए ।' श्री पं. फूलचन्द सिद्धांत शास्त्री इस कोसं 873 केकीसबि खुवमकिशोर
सुधार उसे ईसकी समू के भासपास रखने का प्रयास करते हैं।