Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 13
________________ 1.इसति गौतम 2. परिनभूति 3. वायुभूति 4. व्यक्त - 5. सुषमा मारमा का एस्तित्व नहीं । ... कर्म का अस्तित्व बहीं है।.sha चैतन्य भूतों का धर्म है वा शरीर और.. पाल्मा अभिन्न है। पंच भूतों का अस्तित्व नहीं है। मरिण मृत्यु के बाद अपनी ही योनि में उत्पा होता है। बंध और मोक्ष नहीं है। ' स्वर्ग नहीं है। नरक नहीं है। पुष्य और पाप पृथक् नहीं है। पुनर्जन्म नही है। मोले नहीं है। है. मंडित 7. मार्यपुत्र 8: प्रोपित १.भवलभ्रात 10.,मेनार्य 11.प्रेमास सीकर महाबीर ने इस विद्वानों को अपना शिष्य बनाया और अन्ह अपने सिवान्तों की व्याश्या करने योग्य बनाकर 'गणपर' की पदवी से पलास किया। उनके साथ उनका भिष्य परिकर भी महावीर के चरणो में नतमस्तक हो गया। इससे महावीर का धर्म महनिम्म लोकप्रियता की भोर बढ़ने लगा । भाल, बामसी श्रावक, पौर श्राविका के रूप मे बषिष संघ की स्थापना कर उन्होन धर्म को परपर पहबा दिया। सष को अवस्थित करने की दुष्टसे उन्होंने उसे सास घटकों में विभाजित कर दिया-1. भाचार्य 2. उपाध्याय, 3. स्थविर, 4. प्रक, 5. मणी, 6. गणपर, तथा 7. गरगावच्छेवक । इन घटकों का चारित्रिक बिचान भी प्रस्तुत किया जिसके भाषार पर उनका पारस्परिक व्यवहार पलता था। . . . महावीर का युग विषमता का युग था। पातुर्वण्य व्यवस्था प्रस्त था। मीप- भाषना के दूषिस रोग से प्रस्त था। इस भासदी की कीपर से निकलने के लिए. हर व्यक्ति च्छल रहा था। इसलिए तीर्थकर महावीर मे समता का पाठ विका ऐसी विषम परिस्थिति मे भौर समाज को अभिनुस किया एक भये कतिवारी मान्दोलन की घोर । उनका मन्तव्य था कि प्रत्येक.मात्मा में परमारमा बनने की शक्ति निहित है। वह अनादिकास से कर्मों के वशीभूत होकर जन्म-मरण की प्रक्रिया सेभित हो रहा है। अन्म से कोई माहाणे नहीं, होता की से। इसलिए कम व्यक्ति-व्यक्ति के बीच ऊँच-नीच का भेद करता है, बम हो। मानसिक, बौविक और कार्षिक विशुदि सापकता लिए ए रखने की अवस्थिति इसी सापेकता पर भसंवित है। 17

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