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प्रामाणिकता ही एकान बाट हो गयी है। और अन्य बैंमन्य होना साधारण जम्मा लिएकोमा यो सिमकार र
शन पवता कोश के कोयकार विषय रामेन्द्र परिया पनिमय और बढीमा विषय है। उनके अभियान राम के की यह मासोचना निःसन्देह पर्वपूर्ण प्रतीत होती है पोलिस यहाँ पूरी नहीं हो सकी। इसके बावजूद इस विनासकार की को मी नहीं कह सकते । जिस समय इस कोड का निर्माण हमारे बायकी पायमों का प्रकाशन अधिक नहीं हुमा पापौर मोहमा भी था बहसी पाकित नहीं था। पनुसंधाता को एक ही स्थान पर सम्बर विषय की बानकारी मिल जाती है। इस वृष्टि से उसका विशेष उपयोग कहा जा सकता है।
विजय राजेन्द्रसूरि ने एक और कोम सिखा पा जिसका नाम उन्होंने समा. बुधि कोश रखा था परन्तु इसका प्रकाशन नहीं हो सका । इसमें बेखक ने प्रकाराम कम से प्राकृत शब्दों का संग्रह किया था पोर साव ही संका कार हिन्दी अनुवास दिया था किन्तु प्रमिधान राजेन्द्र कोश की तरह शब्दों पर ध्यासा नहीं की। यह कोस कदाचित पधिक उपयोगी हो सकता था परन्तु म जाने मान बह पावित के रूप मे कहां पड़ा होगा। 2. पर्षमागचीकोश
इस कोश के रचयिता मुनि रत्नचन्द्र लीपाड़ा-सम्प्रदाय के स्थानमा के। उन्होंने जैन-जनेतर अयों का अध्ययन कर गहनत पक्तित्व प्राप्त किया । उनके द्वारा कुछ और भी ग्रंथों की रचना हुई है जिनमें अजरामरस्तोत्र (1969) भावातपत्रिका (सं. 1970), कर्सव्यकौमुदी (सं. 1970), भानामा (सं. 1972), रत्नसिंकार (स. 1973), प्राकृत पाठमाला (सं. 1980), प्रस्तर रत्नावली (सं. 1981), गैनवान मीमांसा (सं. 1983), देखतीराम समालोचना (सं. 1991), जेन सिवान्त कौमुदी (सं. 1994), वर्षमाननीय सटीक भ्याकरण प्रमुख हैं।
मह बर्षमागधी कोश मूमतः गुजराती में लिखा पया पोर उसका हिन्दी सा अंग्रेजी स्पान्तर प्रीतममाल कच्छीमादि अन्य विद्वानों से कराया गया। इस कोच
1. पाहसमहन्मार, वितीय संस्थारण, भूमिका, पृ. 13-14. 2. पमिपान राजेनकोष, भूमिका, 113-14,