Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 75
________________ ये नय उत्तरोत्तर सूक्ष्म विषय को ग्रहण करने वाले हैं। मैगम-मय सदप्रसत् दोनों का ग्राहक है किन्तु संग्रहनय मात्र सत् को ही म्हण करता है। व्यवहार-नय की सीमा त्रिकालवर्ती पदार्थ को ग्रहण करना है। किन्तु युसूफान बर्तमान पदार्थ को ही जान पाता है। शादनय पर्यायभेद होने पर भी प्रभिन्न मर्य को स्वीकार करता है । एवंभूतनय क्रियाभेद से मथं को ग्रहण कर सबसे सूक्ष्म विषय को स्वीकार करने वाला नय है । निक्षेपवाद निक्षेप का अर्थ रखमा प्रथवा नियोजित करना है। साम्द के अर्थ बक्तृ बोपन्य, काकु, प्रसंग:मादि के कारण भिन्न-भिन्न हो जाते हैं। ये कथन या तो भेवप्रधान होते हैं या फिर प्रभेदप्रधान । यद्यपि मौलिक अस्तित्व द्रव्य का है परन्तु उसका व्यवहारिक अर्थ के सम्भव नही प्रतः व्यवहार के निमित्त पदार्थों का निक्षेप प्राचार्यों ने नार पर्थों में प्रयुक्त किया है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । वक्ता अपने विवक्षित प्रथे को इम्ही के माध्यम से व्यक्त करता है। यही निक्षेप है। परिशा शब्द का भी निक्षेप अर्थ में प्रयोग हुमा है । परिज्ञा दो प्रकार की है-द्रव्यपरिज्ञा और भाव-परिज्ञा । माव-परिज्ञा के भी दो भेदह-ज्ञा-परिशा और प्रत्यास्यानपरिज्ञा । द्रव्य-परिज्ञा तीन प्रकार की है-सचित्त, अचित्त और मिश्र । पौण्डरीक अध्ययन मे निक्षेप के पाठ भेद बताये बताये गये हैं-नाम, स्थापना, प्रव्य, क्षेत्र, काल, गरगना, संस्थान और भाव 1 वहीं गणना और संस्थान को छोड़कर छह भेद भी बताये गये हैं । अन्य स्थान पर निक्षेप के पांच भेद गिनाये गये हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र भोर भाव । प्रपम अध्ययन में शीलांक ने निक्षेप के तीन भेद किये है-पोष निष्पन्न, नामनिष्पक्ष और सूत्रालापक निष्पन्न । नामनिष्पन्न के बारह प्रकार मिलते हैं. नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, कुर्तीर्थ, संगार, कुल, गण, सकर, गण्डी और भाव । इसके उदाहरण मादि भी यहां दिये गये हैं-- नामठवरणा दविए देते काले कुतित्यसंगारे । कुलगण संकर गंडी बोद्धम्बो भाव समए य ।। निक्षेप का मुख्य प्रयोजन अप्रस्तुत का निराकरण कर प्रस्तुत का बोष कराना, संशय को दूर करना और तत्वार्थ का अवधारण करना है अवगयरिणबारणह पयवस्स, परूवरणारिणमित्तं च । संसपविणासणटुं, तम्बत्यवधारणटुं च ॥ स्यावाद भाषा की वह निर्दोष प्रणाली है जिसके माध्यम से सरे के विचारों का समादर करता है । अनेकान्त यचपि स्थूलतः स्थाबाद का पर्यायवाची धब्द कहा जा सकता है फिर भी दोनों में भेद है। स्थावाद धावा-दोष बवाना

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