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में किया । इस्त-माइत पाषामों के 11 अन्य प्रतियों का संकलन
रमर, स्वर मावि , TEAM की है कि प्रतिगत भौगोलिक , पी, पला, बामा, पागो, राममभिवों, विद्वानों; पाबाया, बारपाया
माम की पी की सकाराविमो दिच नया है। परमानन्दकी धारा पवित्र 113 पृष्ठों की प्रस्तावना विशेष महत्वपूर्ण है।
नव-प्रचस्थि-संबह के दूसरे मामलाकर मजोर क्षेत्र में इतिहास और साहित्य के सामान्य दिन् । पाप गारवा मन्दिर भनेकाम्त पत्र का लगभग प्रारम्भ हो सम्पादन का भार मा बीरताधिक शोध निबम्बों को स्वयं शिकार प्रकाशित किया। विषयगत पो परमानन जी की सूक्ष्मेनिका हे भलीभांति परचित है। उन्होंने संस्कत, पात, अ सा हिन्दी के अनेक प्राचार्या का काल-निर्धारण किया एवं उनके हिल पक्तित्व पर असाधारण रूप से शोध-सोजकर प्रथमतः प्रकार सा समका एक सीमान मंच जनधर्म का प्राचीन इतिहास अपने पहनाकार में देहली से प्राविमा है, को उनकी विद्वत्ता का परिचायक है । यह उनका चिम बंप है।
इस दितीय भाग में विशेष स से अपभ्रश ग्रंथों की 122 प्रशस्तिवादी गयी है, जो साहित्य पोर इतिहास के साथ ही सामाजिक और वामिक रीति रिवाज पर भी अच्छा प्रकाश गलती हैं । इन प्रशस्तियों को हस्तलिखित ग्रंषों पर ये उपव किया गया है अधिकांश प्रकाशित अंघों को ही सम्मिलित किया गया है। इसमें कुछ उपयोगी परिशिष्ट भी दिए गये हैं जिनमें भौगोलिक पाम, नगर, नाम, संघ, गए, मच्छ, राणा मादि को प्रकारादिक्रम से रखा है। लगभग 150 पृष्ठ की सम्पारन की प्रस्तावना सोष की दृष्टि से और भी अधिक महत्वपूर्ण है। इसका प्रकाशन बीरसेवा मन्दिर, वेहली से सन् 1963 में हमा। एक अन्य प्रशस्ति संग्रह श्री. भुसाली शास्त्री के सम्पादन में बन सिमान्त भवन पारा से बि.सं. 1909 में प्रकाशित हुमा मा। इसमें शास्त्री जी ने 9 ग्रंथकारों की प्रमस्तिवारी है और साथ ही हिन्दी में उनका संक्षिप्त सारांश भी दिया है। 6.सेवा कोम
इसके इस्पायक श्री मोहनलाल बांठिया पौर श्रीचन्द और दिया है और इसके प्रकासन-कार्य का गुरुवार भार भी थी बोठिया ने वाया है, वो कमकता से सन् 1966 में प्रकाशित हुमा । बोनों विद्वान् अनरसन और साहित्य के शोषकहे है। अम्पावकों के सम्मुई जैन कारमय को मारमोमिक दशमलव वर्गीकरण पद्धति का अनुसरण कर 100 बों में विमल किया पौर मावस्यकता के अनुसार ने मन-सत्र