Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 69
________________ 62 था। इसमें 1062 तक के शोध कार्यों को सम्मिलित किया गया है। लगभग 2000 पृष्ठी के इस ग्रन्थ की शब्द सूची बनाने का दुष्कर कार्य सामाजिक सेवा की दृष्टि से डॉ. भागचन्द्र भास्कर, प्रोफेसर एवं निदेशक जैन अनुशीलन केन्द्र, जयपुर विश्वविद्यालय ने हाथ में लिया था जो 250 पृष्ठ में पूरा भी हो गया था । । परन्तु संस्था के आन्तरिक विवाद ने डॉ. जैन के किये हुए कार्य को मटियामेट कर दिया भीर भाज वह बिना शब्द सूची के हो विक्रयार्थ उपलब्ध हुआ है। डॉ. जैन की प्रमूल्य सेवा की यह दुर्गति संस्थान की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट रूप से सामने रखने के लिए पर्याप्त है। प्रस्तुत Bibliography में देश विदेश में प्रकाशित ग्रन्थों भौर पत्रिकाओं से ऐसे सन्दर्भों को विषयानुसार एकत्रित किया गया है जिनमें जैनधर्म और संस्कृति से सम्बद्ध किसी भी प्रकार की सामग्री प्रकाशित हुई है जो निम्नलिखित शीर्षक के अन्तर्गत संकलित की गई है । Encyclopaedias, Dictionaries, Bibliographies, gazetteers, Census Reports and gvides, Historical and archaeological accounts, Archaeology (including Museum), Archaeological Survey, History, Geography, Biography Religion, Philosophy and Logic, Sociology, EnthoPology, Educational statistics, Languages, Literature, general works. इन समस्त Arist को भाठ विभागों में विभाजित किया गया है। इस वृहदाकार ग्रन्थ में देशीविदेशी विद्वानो द्वारा लिखित लगभग 3000 पुस्तकों और नितन्धों मादि का उपयोग किया गया है फिर भी कुछ श्रावश्यक सामग्री संकलित होने से रह गयी है । इसके बावजूद यह ग्रन्थ निर्विवाद रूप से प्राचीन भारतीय संस्कृति, विशेषत: जैन संस्कृति के संशोधन के लिए अत्यन्त उपयोगी सन्दर्भ ग्रन्थ कहा जा सकता है । 12. अन्य कोश उपर्युक्त कोशो के प्रतिरिक्त कुछ मौर भी छोटे छोटे कोश जैन विद्वानों ने तैयार किये हैं। उनमें निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं- श्री बलभी छगनलाल का 'ar pest' ग्रहमदाबाद से सन् 1812 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें प्राकृत शब्दों का गुजराती में मनुवाद दिया गया था। इसी तरह एच० भार० कापड़िया का English-Prakrit Dictionary के नाम से एक कोश सूरत से सन् 1941 में प्रकाशित हुआ था । यहा हम डॉ. भागचन्द्र जैन भास्कर द्वारा संकलित पौर सम्पादित 'विनोदिनी का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसमें उन्होंने संस्कृत पालि, प्राकृत हिन्दी और गुजराती साहित्य में उपलब्ध हलिकाओं का संग्रह किया है। इसका प्रकाशन प्रमोल जैन ज्ञानालय, पूलिंबा की और से सन् 1968 में हुआ था। इसमें संस्कृत, प्राकृत साहित्य में उपलब्ध कुछ और भी प्रहेलिका

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