Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 68
________________ न कुछ परिभाषा उपलब्ध होती है। सभी उपलब्द होते हैं। उनका ठीक-ठीक अभिप्राय urse सेना पड़ता है। श्रीमदर्शन के संदर्भ में इस प्रकार के पारिवारिक सयको की भावयकता थी जो एक ही स्थान पर विकास-क्रम की दृष्टि के दार्शनिक परिभाषाओं को प्रस्तुत कर सके। इस कमी की पूर्वि merennent से वीभांति हो पई । इसमें परिभाषाओं के साथ ही सक्षिप्त हिन्दी अनुवाद भी मोटे टाइप में दिया गया है अनुवादित ग्रंथ भाग का क्रम भी साथ में 'कित किया गया है। अनेक वर्षों के परिश्रम के बाद इस ग्रन्थ का मुद्रा हो पाया है। लगभग 100 पृष्ठों की शास्त्री जी द्वारा लिखित प्रस्तावना ने इसे और भी क सार्थक बना दिया। श्री जुगलकिशोर मुक्तार धीर बाबू छोटेलाल की स्मृतिपूर्वक इस का प्रकाशन हुआ है। इसके दो भाग क्रमशः 1972 और 1975 ई० में प्रकाशित हुए हैं जिनमें लगभग 750 पृष्ठ मुद्रित हैं। तृवीय भाग का भी मुद्रण हो चुका है । सत्रों में शायः ऐसे समझने के लिए परिभाषिक उन रंगों का 11. ए डिक्शनरी ग्रॉफ प्रायर मेन्स भागों में प्रकाशित A Dictionary of Prakrit Proper names का संकलन और सम्पादन डॉ. मोहनलाल मेहता और डॉ. के. मार. चन्द्र ने संयुक्त रूप से किया है और एल. डी. इन्स्टीट्यूट महमदाबाद ने उसे सन् 1972 में दो किया है। डॉ. नेहता बौर डॉ. चन्द्र प्राकृत और मैन क्षेत्र के लिए बात नहीं । दोनों विद्वानों के अनेक शोधग्रंथ बोर निबन्ध प्रकाशित हो चुके है। डॉ. मेहता के द्वारा लिखित ग्रन्थों में प्रमुख है--Jaina Psychology, Jaina Culture, Jaina Philosophy जैन प्राचार, कौन साहित्य का वृहद इतिहास, जैन धर्म दर्शन भादि । डा. चन्द्र ने विमलसूरि के पउमचरिय का अंग्रेजी में पवन प्रस्तुत किया है जो प्रकाशित हो चुका है । इन दोनों विद्वानों ने उपर्युक्त कौन की रचना डॉ. मलाल शेलर के 'A' Dictionary of Pali-Proper names के नामों के सन्दर्भ में यह कोश अच्छी जानकारी प्रस्तुत करता है । 12. Jaina Bibliography : (Universal Encyclopaedia of Jajn References) सन 25 वर्ष पहले कारोबारी ने एक Jaina Bibliography प्रकाशित की ग्राम नहीं है। वीरवार को से डॉ. ए. एन. के सम्पादन में एक और Jains, Bibliogmphy एक बी हो चुकी है। इसे भी किया

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