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स्तोत्र, पुररामद का पात्मानुशासन, मानतुंग का भक्तामर स्तोत्र, प्राचापर का सहस्रनाम स्तोत्र मादि स्तोत्र परक साहित्य मे उसका अनुकरण किया।
इसी प्रकार पौराणिक मौर ऐतिहासिक काम्य साहित्य में रविषेण का पद्मपुराण (वि. सं. 734), जिनसेन का हरिवशपुराण (शक सं 705), मादिपुराण, गुणभद्र का उत्तरपुराण (सक सं. 776), हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुष परित (वि. स. 1228), पादि ऐसे ग्रन्थ हैं जिनका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है।
जैनाचार्यों ने कथासाहित्य का उपयोग माध्यात्मिक जिज्ञासामों के समाधान के लिए किया है। समूचा मागम साहित्य ऐसी कथामों से प्रापूर है जिनमें लौकिक कथानों को अपने उद्देश्य के अनुसार परिवर्तित कर दिया गया है। हरिषेण का बाद कथाकोश (वि. सं 955), प्रभाचन्द्र तथा नेमिचन्द्र के कथाकोश, सकलकीति मादि के वृतकथाकोश इस सदर्भ मे विशेष उल्लेखनीय है। व्यक्ति विशेष को लेकर भी सैकड़ो ग्रन्थ लिखे गये हैं जिनका समीक्षात्मक अध्ययन करना पभी शेष है। इन सभी ग्रन्थों की पृष्ठभूमि मे जैन सिद्धान्त की व्याख्या-प्रस्तुति रही है।
___इसके अतिरिक्त व्याकरण, कोश, मलकार, छन्द, काम्य, ज्योतिष, कोथ, मायुर्वेद, नाटक प्रादि विधामो मे भी जैनाचार्यो ने सस्कृत साहित्य का सुचन किया है।
अभी हमने जैन साहित्य की विविध विधामो को देखा । उनमे अधिकांश रचनाये उच्च कोटि की है । काव्य सौदर्य की दृष्टि से तो एक-एक च बेजोड़ दिखाई देता है । पाश्र्वाभ्युदय, धर्मशर्माम्युदय, पचितामणि, विलकमंबरी प्राधि काव्य कालिदास, माघ, भारवि तथा श्रीहर्ष मादि बसे महाकवियों के ग्रंथों की तुलना मे किसी तरह कम नही। चम्पू साहित्य मे यशस्तिलकचम्पू की कोटि का कोई अथ है ही नहीं । स्तोत्र साहित्य मे भक्तामर, विषापहार, ऐकीभाव पावि स्तोत्र भक्तिरस के कलश है। प्राकृत साहित्य तो अधिकांशतः जैनियो द्वारा ही लिखा गया है। यह सभी साहित्य प्राचीन भारतीय भूगोल और संस्कृति की जानकारी के लिए एक अनुपम और भजस मोत है । लालित्य के भतिरिक्त इसमें राष्ट्रीयता कूट-कूट कर भरी हुई है समन्वयवारिता के लिए तो जैन कवि अग्रदूत कहे जा सकते हैं। मनेकांत बाद की प्रतिष्ठा मोर उस पर सिखा गया साहित्य इसका स्पष्ट उक्षहरण है। पाचार क्षेत्र में हिंसा और विचार क्षेत्र मे अनेकांत की प्रस्थापना द्वारा मानव का जो नैतिक बौद्धिक उत्थान करने का प्रयल जैन तीर्थंकर और उनके शिष्योंप्रशिष्यों ने किया वह अविस्मरणीय रहेगा। समाजवाद को सही रूप में लाने का प्रयत्न मपरिग्रहबाद द्वारा किया गया है। इस प्रकार जैन धर्म मोर साहित्य की मूल भावना सर्वोदयमयी रही है