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बक्षित कथानक भी सुगन्ध दशमी कया गैसी भाव भूमि पर स्थापित पाक पर हैं। इन सभी कथानकों मे मुनि निन्दा मोर उनका फल विशिष्ट प्रतिपादित है । सम्भव है, ये कथानक मुनियों के प्रति बवाभाव जाग्रत रखने, निन्दा वन काय से दूर रहने मोर जैन धर्म के प्रति अनुराग मासक्ति पूर्वक प्रात्मोझर की बुदि. निमित किये मये हैं। ग्रहां पूमा विधान का विकास भी दृष्टव्य है।
कथानक का प्रारम्भ वाराणसी (काशी) के वर्णन से होता है। पाठक को जिज्ञासा अन्त तक बनी रहती है कि श्रीमती का जीव कहाँ भोर से गया। कषा में संघर्ष और चरम सीमा तथा उपसंहार भी दिया गया है। कथा वस्तु प्रर्ष-ऐतिहासिक-पौराणिक प्रख्यात है। पात्र व चरित्र साधारणतः ठीक है। वर्तमान में प्रचलित कहानी के तत्व इस कथा में किसी न किसी रूप में उपलब्ध हो जाते परन्तु वे इतने सशक्त नहीं कि उनकी तुलना कहानियों से की जा सके। पौराणिक पाख्यानों के तस्व अवश्य ही इस कथा मे शत-प्रतिशत निहित हैं । उद्देश्य व भैली मनोहारी है।
इस प्रकार सुगन्धदशमी कथा के विश्लेषण से स्पष्ट है कि वह मानव के प्रात्म कल्याण की पृष्ठभूमि में स्थापित की गई है और उसका महत्व जीवन में सामाजिक, धार्मिक, नैतिक और लौकिक दृष्टि से उत्कृष्ट है ।
कोस लेखन प्रवृत्ति
किसी भाषा भोर उसमें रचित साहित्य का सम्यक अध्ययन करने के लिए सत्सम्बर कोशो की नितान्त मावश्यकता होती है। वेदों पोर संहितामों को समझने के लिए निघण्टु मौर निरुक्त जैसे कोशों की रचना इसीलिए की गई कि जनसाधारण उनमें सन्निहित विशिष्ट शब्दों का पर्थ समझ सके। उत्तरकाल में इसी माधार पर संस्कृत, पालि पोर प्राकृत के शब्दकोशों का निर्माण भाचार्यों ने किया। अमरकोश, विश्वलोचनकोश, नाममाला, अभिधानप्पदीपिका, पाइयलब्धी माममाला पादि जैसे अनेक प्राचीनकोश उपलब्ध हैं। इनमें कुछ एकाक्षर कोन है और कुछ अनेकार्थक शब्दों को प्रस्तुत करते हैं। कुछ देशी नाममाला जैसे भी सम्वकील है, जो देशी शब्दों के पर्व को प्रस्तुत करते है।
इसी प्रकार की अन्य व्रत कथायें भी उपलबपिनका विश्लेषण गर्न के क्रियाकाण पिकासात्मक इतिहास को प्रतिविम्बित करता है। बहसहित्य प्रायः मध्यकालीन है।