Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 52
________________ है स रा पनी भीमति को मुनि महार की व्यवस्था करने पर वापिस भब बेता है। यति मुक्ति के इस पागमन को बसन्त लीला में विन मानती है और कोषाविष्ट होकर उन्हें विशाक्त दुर्वन्धित कटु भोजन करा देती है । ज्ञात होने पर भीमान्त भाव से मुनि उस भोजन को ग्रहण करते हैं। मीर बोई समय बाय काल कवलित हो जाते हैं (1.5) श्रीमति के मन पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है और उसके शारीर में असहनीय दुर्गन्ध का संसर्ग यहीं से प्रारम्भ हो जाता है। समा पद्ममाय श्रीमती को वैश-निस्कासन का दण्ड देता है। विविष दुःखों का संभार लिये हुए रानी श्रीमती मरकर मैंस की योनि पाती है। उससे बाय मिशः सकरी, सामरी चाण्डालिनी होती है। इन सभी अम्मों में उसने दुन्धित सरीर पाया और मुनि अथवा मुनि के जीव पर क्रोष व्यक्त किया। चाण्डालिनी योनि में जन्मी यह बालिका (श्रीमति) प्रत्यन्त दुर्गन्धित होने के कारण एक अटवी में छोड़ दी जाती है । प्रसंग वशात् उसे एक जैन मुनि के दर्शन होते हैं। वे उसे दस धर्मों के पोलन का उपदेश देते हैं और इसी व्रत के उपदेश को दुर्गन्ध से मुक्त होने का एक मात्र मार्ग बताते हैं। मनन्तर धार्मिक जीवन व्यतीत करती हुई वहाँ से व्युत होकर उज्जैन में एक दरिद्र ब्राह्मण के घर कुरूपिनी पुत्री के रूप में जन्म लेती है (1.7) पर वहां भी दुर्गन्ध उसका पीछा नहीं छोड़ती। उन्हीं मुनिराज को देख कर उसे जन्मान्तर का स्मरण हो जाता है भीर मूषित हो जाती है । मुनि उसे गोरस से सिंचित कर सचेत करते हैं । वहाँ श्रीमति के मुख से ही पूर्व भदों का विवरण दिया गया है (1.9) । उज्जैन के राजा ने मुनिराज से इस कारुण्य दुःस से विमुक्त होने का मार्ग पूछा पोर उत्तर में मुनि ने सुगन्ध दशमी पत पालन करने का विधान बताया। इसके बाद यहीं पर चमत्कृति लाने के निमित्त से विद्याधर की एक छोटी भवान्तर कथा का भी प्रसंग उपस्थित किया गया है। (1.10-12) . सुमन्यदशमी व्रत का पालन करने से दुर्गन्धा-कुरुपिनी प्राह्मण-पुनी मरकर रत्नपुर नपरी के श्रेष्ठीवयं जिनदत के घर पुत्री तिलकमती हुई । उसका शरीर मत्यंत रूपवान् और सुगन्धित था। परन्तु मुनि-कोप का दण अभी भी मोयना शेष था। तिलकमती की माता का देहावसान हुमा । जिनक्स ने पुनर्विवाह किया । उससे क्षेत्रमती नाम की पुत्री हुई। , विनयसको रत्म-कम के सन्दर्भ में रनपुरी के राजा कनकनभने देशान्तर भेजा । इषर सौतेली माता के बावात्मक प्रयत्न के बावजूद तिलकमही विवाह निस्पित होगमा विशात् सोसेली माता ने सोलर पूर्वक को श्मशान में मेवा और कहा कहे जी राठ बर वहीं माकर हुमसे निकाह करेगा-वेर को सदर पसरनु, परिक्षावहि अनुष पुति एल्यु ।" यह कहकर विमानती वारों

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