Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 51
________________ 44 जीवन रहस्य की अभिव्यक्ति है। रहस्य की गहनता कीनको सहता है । उस रहस्य के अन्तस्तल तक पहुंचना गृहस्थ-श्रावक के लिए साधारणता हुन्छसा है । अतः उसे सहजता पूर्वक जानने के लिए कथात्मक तत्व का लिया जाता है । ससार में जितनी लोक कथाये व मनुश्रुतिय उपक जीवन के वैषिष्य को समझने के मात्र साधन हैं । सुगन्ध दशमी कथा का श्री इसी उपक्रम का एक सूत्र है । जीवन विषमता का अथाह समुद्र है । उस विषमता मे भी यह जीव समता, सहजता और सुखानुभूति का रसास्वादन कर दुःखानुभूति से मुह मोड़ना चाहता है दुःख की काली बदली से सुख के उज्ज्वल प्रकाश की उपलब्धि मानता है और उसे ही सत्य की प्रतिष्ठापना स्वीकारता है। इस चरम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तथा भागत बाधाओ को तिरोहित करने के लिए प्रदृष्ट शक्ति की उपासना करने में प्रवृत्त होता है । उस प्रतीक की भोर उसका प्राकर्षण बढने लगता है । माध्यम मिलते ही उसके साथ अनेक कथाओं के रूप स्वभावतः जुड़ जाते हैं । परम्परानुसार सुगन्ध दशमी कथा स्वोपार्जित कर्मों से विमुक्त होने का मार्ग है । प्रत्येक कथा की तरह इसे भी श्रेणिक के प्रश्न व गौतम के उत्तर से सम्बद्ध किया गया है । सुगन्ध दशमी व्रत पालन के सन्दर्भ मे गौतम के मुख से कथा कहलाई गई है । यह प्राख्यान प्रख्यात है । लेखको ने प्राय: एक ही ढाँचे में इस कथा को ढाला है । भिन्न-भिन्न लेखको व कवियो ने इसे अपनी लेखनी का विषय बनाया | डॉ हीरालाल जी जैन ने अपभ्रंश, संस्कृत, हिन्दी, मराठी व गुजराती में उपलब्ध इस कथा को प्रकाशित कराया है । तिगोड़ा व शाहगढ़ से प्राप्त गुटकों में प्रकाशित सुगन्ध दशमी कथा के अतिरिक्त प्राकृत व संस्कृत में और भी अन्य कवियों द्वारा लिखी यह कथा मिली है। उन्हें भी प्रकाशित करने का प्रयत्न कर रही हूँ ! अन्य प्रकाशित साहित्य को खोजने से संभव है कि कथा के अन्य रूप भी मिल जायें । वाराणसी (काशी) का राजा पद्मनाथ मौर उनकी महिषी श्रीमति सुखोपatr पूर्वक यौवन का मानन्द लेते हुए काल-यापन कर रहे हैं। वसन्त ऋतु के भागमन पर दम्पति वसन्त लीला के लिए नगर के बाहर निर्मित उद्यान में जाते हैं। इसी प्रसंग मे कोकिल ध्वनि को वसन्त रूपी नट घोर उसी के मुंह से रस, नृत्य व काव्य का रूप माना गया है। (1.51 ) चंडी 1. प्रस्तुत प्रसंग में दिये गये उद्धरण डॉ. हीरालाल जी जैन द्वारा सपादित व अनूदित, अपास की सुगम्बदशमी कथा से लिए गये है। L

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