Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ पाका, 39. पसायर प्राप्ति, 60. ज्योतिष करण्यक, 61. पंग विद्या, 62. विधि प्र क,63. पिन्ट विशुद्धि, 64.सारापति, 65. पर्वतारापना, 66. पीवरिभक्ति 67. जयप्रकरण. 18. योनिप्राभूत, 69. मगलिया, 70. बग्गचूलिया, 71. एख धरल, 72. बम्पयन्ना, 73. पावश्यक नियुक्ति, 74. दशकालिक नियुक्ति, 73. रामवन निकुंक्ति, 76. भाचारांग नियुक्ति, 77, सूत्रकृताय नियुक्ति, 78. सूर्य प्राप्ति, 79. वहस्कल्प नियुक्ति, 80. व्यवहार, 81. दमा अत स्कन्ध नियुक्ति, 82. अषिभाषित नियुक्ति 83. संसक्त, नियुक्ति, 84. विशेषावश्यक स्थानकवासी, और तेरा पन्यप्रादय के अनुसार मामम 32 है-- जन-11, उपांग 12 मूल सूत्र 4- दसवै कालिक, उत्तराध्यान, मनुयोग द्वार, नंदी, खेव सून 4- निधीय, व्यवहार, पहस्कल्प, दशा श्रत स्कन्ध, मावश्यक सूत्र 1 इन पापों पर प्राचार्यों ने नियुक्ति, भाष्य चूरिण, टीका, विवरण, वृत्ति, पपिका पादिरूप में विशाल प्राकृत-ससत साहित्य लिखा। भद्रबाह इन प्राचार्यों में प्रमुखतम प्राचार्य रहे है। उन्होने दस ग्रन्पो पर पाबद्ध नियुक्तिया लिखी-- मावस्यक, दश-कालिक, उत्तराध्ययन, भाचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रत स्कन्ध, बहकल्प, म्यवहार, सूर्य प्राप्ति और ऋषि भाषित। इनकी रचना निक्षेप पद्धति में की गई है। भावश्यक, दावे कालिक, उत्तराभ्ययन, वृहत्कल्प, पंचकल्प, व्यवहार, निशीष, जीतकल्प, मोषनियुक्ति पौर पिण नियुक्ति पर प्राकृत पय बद्ध भाष्य मिलते है। इनमें प्राचार्य जिनभद्र (वि.स. 650-660) का विशेषावश्यक भाष्य विशेष उल्लेखनीय है। सघवासमणि का दहस्कल्प लघुभाष्य भी इसी प्रकार दार्शनिक मौर साहित्यक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पूणि साहित्य पच मे न होकर प्राकृत-सस्कृत मिश्रित गद्य में है। रिणकारों में जिन दास गणि महत्तर और सिरसेन सूरि प्रमुख हैं। टीकामों का कथाभाग अधिकांशतः प्राकृत में है। हरि भद्रसूरि, शीलांकाचार्य और शांतिसूरि इन टीका कारों में पप्रमण्य है। यह साहित्य पर्ष मागधी प्राकृत में है जिसे श्वेताम्बर संप्रदाय स्वीकार करता है पोर दिसम्बर सप्रदाय लुप्त मानता है। पीछे हम दृष्टिबाद के संदर्भ में लिख चुके है । श्वेताम्बर संप्रदाय उसे लुप्त मामता है जबकि दिसम्बर संप्रदाय उसके पुष भाग को स्वीकार करता है । उसका पदामागम इसी दृष्टिबाप के अन्तर्गत प्रयापणी मामक द्वितीय पूर्व के चयनलब्धि नामक पांचवे अधिकार के चतुर्व पाहर (प्रान्त) कर्म प्रकृति पर भाषारित है। इस

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137