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के बिन्दुसार पन्त भेद भाववक
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विनावश्यक माच्य में तमाम के गौबह व सिर कि असशि, मम्मक, मिग्या, सादि, अनादि, बक्षित laliens पर अपमिक, चंयप्रविष्ट व मनमाविष्ट । ये मेव मेली केसाबार परम । मंदिसूत्र, विशे गवश्यक भाष्य, षट्सबदामम पारियों में इसका विक पनि मिलता है।
इन मेनों में गमिक पौर प्रथमिक व इष्टव्य है । प्रश्वा सहारा अधिक है उन्हें ममिक कहते है और जिनमें चार प्रसइस पाठ अधिक हैं उन्हे अमिक कहा जाता है। शिवा कोमिकी संज्ञा दी गई है और अंगवह्य ग्रन्थ भगमिक पात् कालिक पेत के नाम से जाने जाते हैं।
नन्दिसूत्र में अंग बाह के दो भेद -मावस्यक और पावरमतिर आवश्यक के छः भेद हैं - सामायिक पतुविविस्तर, वन्दना, प्रतिकपणकामात पौर प्रत्याख्याना वावश्यक व्यतिरिक्त के दो भेद-कालिक धीर सत्कालिक । कालिक में निम्न प्रन्थ पाते हैं-उत्तराध्यवन, पकालिक काल्प. म्पबहार, निधी महानिशीय, ऋषि भाषित, अम्यूटीपप्राप्ति, दीपसागर प्राप्ति, पति , मल्लिका, विमान, निरयावली, कल्पावसिका प्रादि । उस्कालिक के भी अनेक मेव है-दशवकालिक, कल्याकल्प, मोपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाधिनम, प्रशासना, प. योग द्वार, सूर्यप्राप्ति, वीराग अन पादि। ठाएंम, अनुयोबहार, तथा नाविक पादि ग्रन्थों में भी इसी प्रकार के भेद-प्रभेद मिलने है। यहाँ यह इष्टव्य है कि कालिक अन में दृष्टिबाद अन्तर्भूत नहीं है । दृष्टिबाद तो जमाविष्ट के मन्तव भाता है।
भद्रबाहु से स्थूलभद्र ने दश पूों का अध्ययन किया। मनः जनः कामम से दस पूर्वो का भी लोप हो गया । श्वेताम्बर परम्परा वश पूर्वो का दिन महावीर के गिर्वाण के 162 वर्ष बाद मानती है कि दिगम्बर परम्परा में 345 वर्ष बाद हुमा स्वीकार करती है। पूरे पिर होग पाठियों का भी विचर हो गया । सेवाम्मर परम्परा अनुसार माता पारक्षित ने विशेष पाव्यिों का हाल देखकर को बित कर दिया। फिर भी पूषों का मोषमाया नहीं ब ERE इस मोर को महापौर-निर्माण के 683 वर्ष बाद पटना मारता है।