Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 11
________________ कहीं मागे बढ़ा हुमा था जिसने उन्हें तीर्थकर बनाया। इस संदर्भ में महावीर केले वस स्वप्न उल्लेखनीय है- जिन्हें उन्होंने एक रात्रि में साधना काल में देते थे 1. ताल-पिशाच को स्वयं अपने हाथ से गिराना। 2. श्वेत पुस्कोकिल का सेवा में उपस्थित होना। 3. विचित्र वर्णमाला स्कोकिल के मामने दिखाई देना। 4. सुगंधित दो पुष्पमालायें दिखाई देना। 5 श्वेत गो-समुदाय दिखाई देना। 6. विकसित पद्म सरोसर का दर्शन । 7. ग्वयं को महासमुद्र पार करते देखना । 8. दिनकर किरणों को फैलते हुए देखना । 9. अपनी प्रांतों से मानुषोत्तर पर्वत को वेष्टित करते हुए देखना, पौर 10. स्वयं को मेरू पर्वत पर चढ़ते हुए देखना। पार्श्वनाथ परम्परा के अनुयायी निमित्त ज्ञानी उत्पल ने इन स्वप्नों का क्रमशः फल महावीर से इस प्रकार कहा 1. पाप मोहनीय कर्म का विनाश करेंगे । 2. प्रापको शुक्लध्यान की प्राप्ति होगी। 3. आप विवध ज्ञानरूप द्वादशांग श्रुत की प्ररूपणा करेंगे। 4. चतुर्थ स्वप्न का फल उत्पल नहीं समझ सका। 5. चतुर्विध संघ की माप स्थापना करेंगे। 6. चारों प्रकार के देव प्रापकी सेवा में उपस्थित रहेंगे। 7. पाप संसार सागर को पार करेंगे। 8. आप केवलज्ञान प्राप्त करेंगे। 9. पापकी कौति त्रिलोक में व्याप्त होगी, और 10. सिंहासनारूढ़ होकर माप लोक में धर्मोपदेश करेंगे। जिस चतुर्थ स्वप्न का फल उत्पल नहीं बता सका उसे महावीर ने स्पष्ट किया कि वे श्रावक धर्म और मुनि धर्म का कथन करेंगे । हम जानते है कि स्वप्न व्यक्ति की मन: स्थिति का प्रतीक होता है। उनके पीछे प्रायः एक सजग पृष्ठभूमि प्रतिबिम्बित होती दिखाई देती है। महावीर के स्वप्न मात्र स्वप्न नहीं थे बल्कि उनके पढ़ निश्चय और मानसिक विशुद्धि के परिचायक थे । इसी को चरम अभिव्यक्ति उनके केवलज्ञान की प्राप्ति तया तीर्घ प्रवर्तन में पृष्टव्य है। केवल. ज्ञान की प्राप्ति बैशाख शुक्ल दशमी को, दिम के चतुर्थ प्रहर में जमा नदी के तटवर्ती शाल वृक्ष के नीचे गोदोहिका मासन काल में हुई । फल-स्वम चार पातिया कर्मों का विनाश करके वे परिहंत हो गये।

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