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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन सम्बन्धित साहित्य जिनसेनाचार्यकृत “आदिपुराण" है, जिसमें उन्होंने संस्कारों की चर्चा की है। इसी प्रकार "हरिवंशपुराण" आदि में भी संस्कार सम्बन्धी उल्लेख मिलते हैं। फिर भी इन ग्रन्थों में संस्कार सम्बन्धी विधि-विधान का विस्तृत उल्लेख नहीं है। विशेष रूप से गृहस्थ-जीवन से सम्बन्धित और हिन्दू-परम्परा में स्वीकृत सोलह संस्कारों का जैन-परम्परा में अपने विधि-विधान सहित विस्तृत उल्लेख तो आचारदिनकर में ही मिलता है। यद्यपि उनके विवेचन से ऐसा तो लगता है कि उनके समक्ष पूर्वाचार्यों की कृतियाँ तो रही होंगी, फिर भी वे कौनसी थीं? यह हमें ज्ञात नहीं है। वर्तमान में तो हमारे समक्ष आचारदिनकर ही एकमात्र ऐसी कृति
श्वेताम्बर-परम्परा के संस्कार सम्बन्धी साहित्य में वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर का स्थान :
इस प्रकार श्वेताम्बर-परम्परा के संस्कार सम्बन्धी साहित्य में वर्धमानसूरिकृत “आचारदिनकर" का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसमें परम्परा से चले आ रहे संस्कारों के विधि-विधान का स्पष्ट विवेचन किया गया है। संस्कारों का उद्भव प्राचीनकाल में ही हुआ होगा- ऐसा हम मान सकते हैं, क्योंकि कल्पसूत्र में आदिनाथ के चरित्र में इनमें से कुछ संस्कारों के मात्र नामोल्लेख मिलते हैं, फिर भी उनकी स्पष्ट विधि का विवेचन आगमसाहित्य में नहीं मिलता है। निवृत्तिप्रधान दृष्टि के कारण जैन-परम्परा में संस्कारों से सम्बन्धित साहित्य का सम्यक् विकास नहीं हो पाया। हमारी दृष्टि में जैनधर्म का निवृत्तिमार्गी होना ही उसमें संस्कार सम्बन्धी स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना में बाधक था, फिर भी हरिभद्रसूरि और आचार्य पादलिप्तसूरि ने पूजा-प्रतिष्ठा, आदि संस्कारों से सम्बन्धित ग्रन्थों की रचना की। “पंचाशकप्रकरण", "निर्वाणकलिका" आदि में कुछ संस्कारों का विवेचन हुआ है, किन्तु आचारदिनकर में जिस प्रकार गृहस्थ के, यति के एवं सामान्य संस्कारों की विस्तृत चर्चा हुई है, उतना स्पष्ट विवेचन शायद आज तक किसी भी श्वेताम्बर-जैनाचार्य ने नहीं किया है।
“आचारदिनकर" नामक ग्रन्थ में गर्भ में आने से लेकर जीवन के अन्त तक के सभी संस्कारों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है। इन संस्कारों को कब, किस समय एवं किस प्रकार किया जाना चाहिए, संस्कार-विधि करते समय क्या-क्या किया जाना चाहिए? इसका भी इसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया है, जिसे सामान्य व्यक्ति भी सरलता से हृदयंगम कर सकता है।
संस्कारों के विवेचन तो अन्य ग्रन्थों में भी मिलते हैं, पर उन संस्कारों में कौनसे संस्कार किसके द्वारा करवाना चाहिए? इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं किया
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