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अन्तस्तत्त्व
[ग्यारह] १.१.४. कषायविजय में बाधक १.१.५. ध्यानस्वाध्याय में बाधक
१२२ १.१.६. आभ्यन्तरपरिग्रह-त्याग में बाधक १.१.७. रागद्वेष से मुक्त होने में बाधक
१२३ १.१.८. शरीर के प्रति अनादरभाव में बाधक
१२३ १.१.९. स्वाधीनता में बाधक
१२३ १.१.१०.चित्तविशुद्धि के प्रकट होने में बाधक
१२४ १.१.११.निर्भयता में बाधक
१२४ १.१.१२.विश्रब्धता में बाधक १.१.१३.अप्रतिलेखना में बाधक १.१.१४.परिकर्म से मुक्त होने में बाधक १.१.१५.लाघव में बाधक
१२६ १.१.१६.सचेलत्व तीर्थंकर-मार्गानुसरण में बाधक
१२६ १.१.१७.बलवीर्य के प्रकटन में बाधक १.१.१८.अचेल ही निर्ग्रन्थ है
१२७ १.२. किसी भी सचेल का निर्दोष रहना असंभव २. गृहस्थमुक्तिनिषेध
१२८ ३. परतीर्थिकमुक्ति-निषेध ४. स्त्रीमुक्तिनिषेध
१३२ ५.. अपरिग्रहमहाव्रत का लक्षण यापनीयमत-विरुद्ध
१३६ ६. केवलिभुक्तिनिषेध
१३७ ७. यापनीयमत-विरुद्ध अन्य सिद्धान्त द्वितीय प्रकरण-यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता । १. मुनि के लिए सचेल अपवादलिंग अमान्य
१४१ १.१. सवस्त्रमुक्ति के घोर विरोधी
१४२ १.२. सचेललिंगधारी के मुनि होने का निषेध १.३. परिग्रहधारी यति (संयत) नहीं
१४४ १.४. वस्त्रधारी गृहस्थ ही वस्त्रधारी श्वेताम्बर साधु बनता है १४५ १.५. मुनिधर्म उत्सर्ग, श्रावकधर्म अपवाद
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