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[ दस ]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड, ३
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१४. भद्रबाहु-समाधिमरण बृहत्कथाकोश में १५. 'आचार', 'जीतकल्प' शास्त्रों के नाम नहीं १६. 'अनुयोगद्वार' शास्त्र का नाम नहीं
१७. आवश्यकसूत्र की गाथा मूलग्रन्थ में उद्धृत नहीं १८. आचारांगादि नाम दिगम्बरपरम्परा में भी प्रसिद्ध O उपसंहार : दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण सूत्ररूप में
तृतीय प्रकरण - भक्तप्रत्याख्यान में स्त्री के लिए नाग्न्यलिंग नहीं
१. आगमोक्त दीक्षालिङ्ग ही भक्तप्रत्याख्यानलिङ्ग
२. तदेव लिङ्ग
३.
प्राक्तन लिङ्ग
४. आर्यिका के प्रसंग में विविक्त- अविविक्त स्थान का उल्लेख नहीं आर्यिका का अल्पपरिग्रहात्मक लिङ्ग ही उपचार से सकलपरिग्रहत्यागरूप उत्सर्ग लिङ्ग
५.
६. आर्यिकाओं के प्रसंग में 'पुंसामिव योज्यम्' निर्देश भी नहीं ७. 'पुंसामिव योज्यम्' का अभिप्राय
८. अमहर्द्धिकादि श्राविकाओं के लिए सर्वत्र उत्सर्गलिङ्ग
९. युक्तित: भी आगमविरुद्ध
१०. पं० सदासुखदास जी को अस्वीकार्य
चतुर्दश अध्याय
अपराजितसूरि : दिगम्बर आचार्य
प्रथम प्रकरण - अपराजितसूरि के दिगम्बर होने के प्रमाण
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विजयोदयाटीका में यापनीयमत- विरुद्ध सिद्धान्त
१. सवस्त्रमुक्ति का निषेध : तीर्थंकरों का अचेललिंग ही मोक्ष का
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एकमात्र उपाय
१.१. सचेलत्व की मुक्ति-विरोधिता के अनेक हेतु
१. १. १. दशधर्मपालन में बाधक
१.१.२. संयमशुद्धि में बाधक १.१.३. इन्द्रियविजय में बाधक
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