Book Title: Jain Jyotirgranth Sangraha
Author(s): Kshamavijay
Publisher: Mulchand Bulakhidas Shah

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Page 11
________________ २ । जैनज्योतिर्मन्थसंग्रहे हारिभद्रीया लमशुद्धिः । जइ न गुरू सुक्को वा बालो वुड्डो य अत्थमिओ ॥ १४ ॥ दसै तिन्नि दिणे बालो पणदिणे पक्खं च भिगुसुओ वुड्डो । पच्छिमपुवासु कमा गुरु ३ वि जहसंभवं एवं ॥ १५ ॥ आइञ्चबुहविहप्फइसणिवारा सुंदरा वयग्गहणे । बिंबपइट्ठाइ पुणो विहप्फइसोमबुहसुक्का ॥ १६ ॥ मुत्तुं चउदसि पनरसि नवमट्ठमि छट्टि बारसि चउत्थी । सेसा उ वयग्गहणे गुणावहा ६दुसु वि पक्खेसु ॥ १७ ॥ सियपक्खे पडिवय बीअ पंचमी दसमि तेरसी पुन्ना । कसिणे पडिवय बीआ पंचमी सुहया पइट्ठाए ॥ १८ ॥ सम्वे वि वारतिहिओ सुहया सइ सिद्धिजोगसब्भावे । चंदंमि उव९चयंमि न उण नट्ठम्मि झीण्णे वा ॥ १९ ॥ सियपडिवयाउ दस दिण चंदो मज्झिमबलो मुणेयव्यो । तत्तो अ उत्तमबलो अप्पबलो तइय दसमम्मि ॥ २० ॥ उत्तररोहिणिहत्थाणुराहसयभिसयपुत्वभद्दवया । १२ पुस्स पुणव्वसु रेवइ मूलस्सिणि सवण साइ वए ॥ २१॥ मह मियसिर हत्थुत्तर अणुराहा रेवई सवण मूलं । पुस्स पुणव्वसु रोहिणि साइ धणिट्ठा पइट्टाए ॥ २२ ॥ कारावयस्स जम्मणरिक्खं दस सोलसं १५ तहऽहारं । तेवीसं पंचवीसं बिंबपइट्ठाइ वजिज्जा ॥ २३ ॥ पढमो छट्ठो नवमो दसमो तह तेरसो अ पन्नरसो । सत्तरसेगुणवीसो सत्तावीसो असुहजोगो ॥ २४ ॥ छट्ठो छ दसमो पणे पढमो नवमो अ पंचें१८ घडिआओ । तीसं सत्तावीसो नवं तेरसमो अ पन्नरसो॥२५॥ सव्वं सत्तरसेगुणवीसो वजो अवस्समन्ने उ । जोगा सव्वे वि सुहा नायव्वा सव्वकज्जेसु ॥ २६ ॥ विहिँ विवजिऊणं पाएण सुहाई सव्वकरणाई । २.आणंदयरं च दिणं सगुणं तह सिद्धिजोगजुअं ॥ २७ ॥ सिअंबुहंकुज सणिगुरुणो पंचसु पढमासु छडि कुजसुका । सत्तमि बुहे अट्ठमि सूरमंगला नवमि सणिससिणी ॥ २८ ॥ दसमि गुरु इक्कारसि गुरुसुका २५ बारसी बुहो अ सुहो । तेरसि मंगलसुका चोदसि सणि पंचदसि जीवो ॥ २९ ॥ हत्थुत्तरमूलाई रविणो सिद्धाइं पंच रिक्खाई। रोहिणिमिअसिरपुस्साऽणुराहसवणाइं सोमेणं ॥ ३० ॥ उत्तरभद्दवयस्सिणिरेव२. इरिक्खाई तिन्नि भोमेणं । कत्तिये रोहिणि मिअसिरै पुस्र्स अणु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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