Book Title: Jain Jyotirgranth Sangraha
Author(s): Kshamavijay
Publisher: Mulchand Bulakhidas Shah

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Page 10
________________ । जैनज्योतिर्ग्रन्थसंग्रहः। । ज्योतिर्विदाभरणपूज्यपादाचार्यश्रीविजयदानसूरीशेभ्यो नमः । । सुविहितशिरोमणिआचार्यवर्यश्रीहरिभद्रसूरिसूत्रिता। ।लमशुद्धिः। अवितहसव्वाएसं नमिउं चोवीसमं जिणवरेसं । वुच्छामि समासेणं लग्गं सुगुरूवएसेणं ॥ १॥ कजं कुणंतयाणं सुहावहो जोइसम्मि जो३ भणिओ । कालविसेसो लग्गं कजं पुण बहुविहं जइ वि ॥ २ ॥ तह वि हु इह लोगुत्तरदिक्खोवट्ठावणापइट्ठाओ । अहिगिच्च लग्गसुद्धिं भणिजमाणं निसामेह ॥ ३ ॥ सा पुण इह विनेया गोअरसुद्धीई दिवससुद्धीएं । ६ तस्समयउदयपत्तस्स तह वि लग्गस्स सुद्धीएँ ॥ ४ ॥ गुरुससिरविणो बलिणो दिक्खोवट्ठावणासु सीसस्स । जइ तो गोअरसुद्धी गुरुणो वि हु ससिबले संते ॥ ५ ॥ बिंबपइट्ठाइ पुणो कारावयसावयस्स बलिएसु ।९ गुरुससिसूरेसु भवे गोअरसुद्धित्ति बिंति बुहा ॥ ६॥ दोपंसत्तैनवमिकारसमो जम्मरासिणो जीवो । पढमतिसत्तैदसमेक्कारसमो ससहरो बलवं ॥ ७ ॥ दोपंचनवमंगो विहु सियपक्खेसो रवी उ तिछदसमो । १२ इक्कारसमो अ बली सेसठाणेसु ते अबला ॥ ८॥ सियपक्खे चंदबलं असिए ताराबलं पि गहियव्वं । तं पुण तिपंचसत्तमत्ताराओ मुत्तु सेसा उ ॥ ९॥ पढमा जम्मणि रिक्खे तत्तो दसमम्मि इगुणवीसे अ । बीआ १५ तप्परएसुं तिसु एवं जाव नव तारा ॥ १० ॥ जम्मं संपई विप्पई खेमा पञ्चरये साहा निहणा । मित्ता अइमित्ता वा तारा नेआ असिअपक्खे ॥ ११ ॥ जइ नो नजइ जम्मणरासी तो गणह नामरासीओ । अव-१८ कहडाचकाओ सा नजइ तं पुण पसिद्धं ॥ १२ ॥ सुहमासवारतिहिं. रिक्खेंजोगकरणे दिणम्मि सगुणमि । निहोसे तह निदोससँगुणरिक्खंमि दिणसुद्धी ॥ १३ ॥ मिग्गसिराई मासह चित्तपोसाहिए वि मुत्तु मुहा ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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