Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 12
________________ ३३४ TAImmummam जैनहितैषी। ARTISTITUTINE नित्य प्रति अपनी आकांक्षाओंको बढ़ाता है चाहिए कि किस तरह उसकी उत्पत्ति हुई वह कभी यह ख्याल नहीं करता कि लोभ और किस तरह उसे दूर किया जा सकता है । पर कभी विजय नहीं प्राप्त की जा सकती। मनुष्यकी कषायें जितनी तीव्र होती हैं,उतना वह अपने ऊपर विजय प्राप्त करनेके लिए ही भयंकर उसे लालच होता है और जितना दृढ़ संकल्प रखता है । बुराई पर सन्तोष गहरा मनुष्यका स्वार्थ और अभिमान होता कर लेना अपनी पराजयको स्वीकार कर है, उतना ही प्रबल उसका लोभ होता है। लेना है और उससे सूचित होता है जो युद्ध यदि मनष्य सत्यके जाननेका इच्छुक है अपनी वासनाओंके विरुद्धमें किया गया था तो उसे पहले अपने आपको जानना चाहिए। उसे छोड़ दिया है, भलाईको त्याग दिया है यदि अपने आपको जाननेका उद्योग करते और बुराईको ग्रहण कर लिया है। समय अपनी त्रुटियाँ अथवा अपने अवगुण जिस तरह उत्साही मनुष्य विघ्नबाधा- प्रगट हों, तो उनसे घबराना नहीं चाहिए ओंकी परवा नहीं करता किंतु सदा उन पर कितु उनका हृदयस मटा किंतु उनका हृदयसे स्वागत करना चाहिए। विजय प्राप्त करनेकी धुनमें लगा रहता है उनके प्रगट होनेसे उसे अपना ज्ञान उसी तरह निरंतर आकांक्षा रखनेवाला मनुष्य होगा और अपना ज्ञान होनेसे आत्माको लोभसे लुभाया नहीं जाता, किंत इस बातकी संयम और इंद्रियदमनमें सुभीता होगा। जोहमें रहता है कि किस तरहसे अपने जो मनुष्य अपनी भूलों और त्रुटियोंको मनकी रक्षा करे । लुभाया वही जाता है जो प्रगट होते नहीं देख सकता, किंतु उन्हें सबल और सुरक्षित नहीं होता। छिपाया चाहता है, वह सत्यमार्गका अनु मनष्यको उचित है कि लोभ लालचके गामी नहीं हो सकता । उसके पास लालचको भाव और अर्थपर अच्छी तरहसे विचार करे; पराजित करनेके लिए काफी सामान नहीं है। कारण कि जब तक उसका अच्छी तरह जो मनुष्य अपनी नीच प्रकृतिका निर्भय ज्ञान प्राप्त नहीं किया जायगा, तब तक उस होकर सामना नहीं कर सकता वह त्यागके पर जय प्राप्त नहीं की जा सकती । जिस ऊँचे पथरीले शिखर पर नहीं चढ़ सकता । तरह बुद्धिमान् सेनापति विरोधी दल पर लुभाये जानेवाले मनुष्यको यह जानना आक्रमण करनेसे पहले शत्रुकी सेनाका पूरा चाहिए कि वह स्वयं अपनेको लुभाता है, पूरा हाल जाननेका उद्योग करता है, उसी उसके शत्रु उसके भीतर हैं। चापलूस जो उसे तरह जो मनुष्य लोभको दूर करना चाहता है बहकाते हैं, ताने जो उसे दुख देते हैं और उसे इस बात पर पूर्ण रूपसे विचार करना शोले जो जलाते हैं, वे सब उस अज्ञानताके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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