Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ ३७० जैनहितैषी परन्तु कविताके थोड़े शब्दों में बहुत कहने ' के १५ भावविलास और देवशतक । गुणकी रक्षा हो जाती । पद्यके नीचे गद्यमें भी मूल- प्रकाशक, मुंशी गोविंदशरण सरदार, महकमे का अर्थ लिखा गया है और हमें उसमें कोई दोष अपील, जयपुर । ' हिन्दीनवरत्न ' के लेखकोंने नजर नहीं आया । इसके साथ ही पं० सखाराम देवकविको हिन्दीके नौ सर्वश्रेष्ठ कवियोंमें गिनाया दुबे, बी. ए. बी. एल. का अँगरेजी अनुवाद भी है और उनकी रचनाकी बहुत प्रशंसा की है । छपा है जो शायद अँगरेजी पढ़नेवाले विद्यार्थियों- यह ग्रन्थ उन्हीं देवकविका बनाया हुआ है। के लाभके लिए लिखा गया है । इस पुस्तकके भावविलासमें शृंगाररसके समस्त भाव-नायक प्रकाशक 'मेसर्स हरिदास एण्ड कम्पनी, हेरिसन रोड नायिका भेद अलङ्कार आदि-वर्णित हैं और शतकलकत्ता' हैं । छपाई अच्छी है । मूल्य आठ आने। कमें ब्रह्म, तत्त्व, आत्मा आदिके विचार हैं। १३ जीवनी शक्ति। यह पुरानी ब्रजभाषाकी कविता है। जो लोग अनुवादक पं० ज्वालादत्त शर्मा । प्रकाशक हरि- इसे समझते हैं और शृंगाररसके रसिक हैं उन्हें दास एण्ड कम्पनी कलकत्ता । मूल्य पाँच आने। अवश्य ही इसके पढ़नेमें आनन्द आयगा । कविता यह बंगालके सुप्रसिद्ध डाक्टर प्रतापचन्द्र मजूमदार अच्छी है पर इतनी अच्छी नहीं कि उसके बलसे एम. डी. की लिखी हुई बंगला पुस्तकका अनुवाद देवमहाकवियोंकी श्रेणीमें बिठाये जा सकें । देवहै । हमने इसे बंगलामें पढ़ा है । बड़ी ही अच्छी शतककी कवितामें गंभीरता और तत्त्वज्ञता बहुत पुस्तक है । दीर्घ जीवन प्राप्ति करनेके लिए शारी- कम है जो उसके विषयोंके लिहाजसे होनी चाहिए रिक और मानसिक शक्तियोंकी रक्षा और सदु- थी । पुस्तकका पूफ अच्छी तरह नहीं देखा गया पयोग किस प्रकार करना चाहिए, इसका इसमें और छपाई तो इतनी भद्दी है कि आजकलके सर्व साधारणके समझनेमें आने योग्य वर्णन किया सौन्दर्यप्रेमी पाठक शायद ही इसे पसन्द करें। गया है । स्नान, आहार, कसरत, चिकित्सा और बड़े साइजके ११४ पृष्ठोंकी पुस्तकका मूल्य औषधसेवन, अनेक तरहकी चिन्तायें और पाँच आने बहुत कम है। भावनायें, दीर्घजीवनसे लाभ, आदि कई अध्यायोंमें १६ व्याख्यानसाहित्यसंग्रह ( गुजराती)। पुस्तक विभक्त है। अनुवाद भी अच्छा हुआ लेखक, मुनिराज श्रीविनयविजयजी और प्रकाहै। इस प्रकारकी पुस्तकोंके प्रचारकी बहुत आव- शक देवचन्ट दामजी सेटे. भावनगर । मन्य दाई श्यकता है। रुपया। लेखक महोदयने इसे सात वर्षके सतत परि१४ शारदा। श्रमसे तैयार किया है ! इसमें व्याख्यानोंका तो नहीं अनुवादक पं० शिवसहाय चतुर्वेदी, प्रकाशक व्याख्यानोंके उपयोगमें आनेवाले सैकड़ों विषयोंका हिन्दीहितैषी कार्यालय, देवरी (सागर),पृष्ठसंख्या ५०। और अनेक ग्रन्थोंसे लिये हुए हजारों श्लोकोंका संग्रह बंगलाके प्रसिद्ध उपन्यासलेखक शिवनाथ शास्त्रीके है । संग्रहमें और गुजराती विवेचनमें कोई विशेष' मेजवऊ ' नामक उपन्यासका यह परिवर्तित ता नहीं । प्रारंभमें लेखक, मुनि आत्मारामजी अनुवाद है । इसका पिछला भाग जो दुःखान्त था और सेठ मकनजी कानजीके चित्र तथा चरित्र सुखान्त कर दिया गया गया है । एक गार्हस्थ्य हैं जो आज कलके समयमें प्रसिद्धिके लिए बहुत चित्र है। स्त्रियोंके लिए उपयोगी और शिक्षाप्रद ही आवश्यक समझे जाते हैं और जिन्हें उदासीन है। छपाई अच्छी है। मूल्य छह आने । जैन साधु भी बुरा नहीं समझते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106