Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 50
________________ ILLAHULILALIMITALITILLUTILIT ३७२ जैनहितैषी ठीक यही श्लोक आचार्य समन्तभद्रके रत्न. डेड़ आना । सौ पोंकी पुस्तक है। भारतकी वर्तमान करण्ड श्रावकाचारमें भी है। इस बातका पता दशा पर बहुत कुछ कहा गया है जो पढ़नेवालोंपर लगानेकी जरूरत है कि यह रत्नकरण्डमें क्षेपक प्रभाव डालेगा । कविता अच्छी है। है उद्धृत है, अथवा रत्नकरण्ड परसे न्यायावतारमें २२ महात्मा टाल्सटायके लेख । उद्धत किया गया है। यह दिलायब्ररी आफ जैन प्रकाशक, ग्रन्थप्रकाशकसामति पत्थरगली, लिटरेचर ' की दूसरी पुस्तक है। मूल्य इसका काशी । रूसके सुप्रसिद्ध विद्वान् महार्ष टाल्सटायके चार आने है। तीसरी पुस्तक अँगरेजीमें है और १ लोग नशा क्यों करते हैं, २ उद्योग और आलस्य, मि. एच. वारनकी लिखी हुई है । इसके पहले ३ शिक्षणसम्बन्धी पत्र, ४ धर्म और बुद्धि, इन निबन्धका हिन्दी अनुवाद हितैषीमें 'जैनधर्म चार महत्त्वपूर्ण लेखोंका संग्रह है । मू० चार आने । नास्तिक नहीं है । के नामसे प्रकाशित हो चुका २३ विमलविनोद। है। यह सेठ नगीनदास और माणिकलालकी स्वामी दयानन्द सरस्वतीका उपदेश । ओरसे मुफ्त बाँटी गई है । ४ विश्वतत्त्व और ५ लेखक, एम्. बी. मोक्षाकर और प्रकाशक, शेठ सार्वधर्म ये दो चार्ट या नकशे हैं जो दीवाल जवाहरलाल जैनी, सिकन्दराबाद । मूल्य दस पर चिपकाने या टाँगनेके कामके हैं। पहलेमें जीव आने । मिलनेका पता-आत्मानन्दजैनपुस्तकअजीव आदि तत्त्वोंके तमाम भेद प्रभेद बतलाये प्रचारक मण्डल. रोशन मुहल्ला, आगरा। यह पुस्तक हैं और दूसरे में निश्चय और व्यवहार धर्मके सम्यग्द- हमारे पास कई महीनोंसे पड़ी है । हमने कई बार र्शन-ज्ञान--चरित्र आदि भेद और उपभेद दिख• चाहा कि इसको पढ़ जायें और देखें कि इसमें क्या लाये गये हैं। इनसे जैनदर्शनकी स्थूल रचना लिखा है; परन्तु ३७६ पृष्ठके पोथेको पढना साधासमझमें आजाती है । पहलेका मूल्य तीन आने रण काम नहीं । कुछ ही पृष्ठ पढकर हम सन्तुष्ट और दूसरेका चार आने है । पुस्तकों और चार्टो- हो गये । इसमें स्वामी दयानन्द सरस्वती और उनके की छपाई आदि बहुत सुन्दर है । इस काममें समाजसुधारसम्बन्धी सिद्धान्तोंकी बुरी तरह प्रकाशक महाशय सिद्धहस्त हैं मिलनेका पता- मिट्टी पलीद की गई है। खूब ही जी खोलकर दि सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, आरा। मालियाँ दी हैं और बड़े ही भद्दे ढंगसे उनकी २० सन्तान-पालन। गल्तियाँ दिखलाई हैं। सभ्यताका या भाषासमितिका अनुवादक,बाबू शिवजीलाल काला । प०, वैद्य जरा भी खयाल नहीं रखा गया है। मालूम नहीं, शंकरलाल हरिशंकर, मुरादाबाद । प्रसिद्ध जलचि- इस प्रकारकी पुस्तकोंको लिखकर लेखक क्या लाभ कित्सिक डा. लुई कूने साहबकी अँगरेजी पुस्तकके सोचते हैं। क्या कोई पुरुष अपने असत्य विचा आधारसे यह लिखी गई है। बच्चोंका पालन पोषण रोंको गालियाँ खाकर छोड़ देता है ? गालियाँ तो किस तरह करना चाहिए और उनका खानपान उसे अपने विचारों में और भी पक्का करती हैं और कैसा होना चाहिए, आदि बातोंपर बहुत ही अच्छे धार्मिक द्वेषकी सृष्टि करती हैं । लेखकके विचारसे विचार लिखे गये हैं । जो लोग बाल-बच्चोंवाले हैं, यदि आर्यसमाजके सिद्धान्त अच्छे नहीं हैं तो उन्हें उन्हें इसे एकबार अवश्य पढ़ जाना चाहिए । ३६ युक्तिपूर्वक सभ्यताके साथ दूषित ठहराना चाहिए। पृष्ठकी पुस्तकका मूल्य चार आने अधिक है। इस पुस्तकको देख कर हमें बड़ा दुःख हुआ और २१ भारतीय शतक। उसने इस कारण हम पर और भी अधिक प्रभाव ले०, मुंसिफसिंह यादव । प्र०, ब्रह्मचारी नरेन्द्र डाला जब हमें मालूम हुआ कि इस पुस्तकके यादव, इटौली पो० शिकोहाबाद (मैनपुरी)। मू० प्रकाशक 'युक्तिमद्वचनं' को मस्तक पर चढानेवाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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