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प्रतिदान ।
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बहुत वादानुवादके बाद निश्चय हुआ कि दिनमणि सूर्य्य धीरे धीरे पश्चिम गगनमें मुँह इस बार फिर क्लारा सौ रुपये देकर हिलकी छिपा रहा है । सांध्यसमीर दक्षिण दिशासे सुसं- मानरक्षा करेगी । उसके बाद वह फिर कुछ वाद लाकर बरासके फूलोंको हँसा रहा है। न देगी। आनन्दके मारे फूलकी दो एक पत्तियाँ टूटकर उक्त घटनाके तीन चार दिनके बाद दिवाघासपर बैठे हुए प्रेमिक प्रोमिकाके ऊपर गिर कर बाबू अपने बंगलेके पीछेवाले मैदानमें प्रात:पड़ी । घोसलेमें जानेसे पहले गुलगुचियाने एक- समीरका सेवन कर रहे थे । मूर साहब उस वार खूब जोरसे गाया । उसके प्रत्युत्तरमें काली समय मधुपुरमें नहीं थे, खानका काम देखनेके कोयलने भी अपने कण्ठमें छिपाई हुई सुधाको लिए बाहर गये हुए थे। इसी लिए मिसेज चायुकी गोदमें बहा दिया।
मूर कई कुत्तोंको साथ लिए अकेली हवा खारही मिसेज मूरने कहा-"फ्लारेन्स, अब मुझसे थी और बीच बीचमें अपने नीलनयनोंके कटाऔर नहीं हो सकता। इस बार ही वृद्धने मुझ पर क्षोंसे दिवाकरके हृदयका अन्तस्तल तक आलोसन्देह किया था। वहाँ रहना हमारे लिए कित- ड़ित कर देती थी। ना असुविधाजनक है यह बतानेकी बात नहीं। दिवाकरको देखकर एक छोटासा कुत्ता भोंकने न मालूम बूढ़ा मूर कब मरेगा।" लगा । मेम साहबने विरक्त होकर उसको चुप
जिस युवकके साथ मिसेज मूर बातचीत कर किया । उस समय दिवाकर और क्लाराके बीचमें रही थी उसकी अवस्था कोई तीस सालकी होगी। ५-६ गजका ही अन्तर था। दिवाकरने सोचा उसका शरीर खूब मजबूत था । फ्लारेन्स हिल- कि यह सुयोग छोड़ना ठीक नहीं । उसने बड़े का मुखमण्डल यौवनकी कान्तिसे खूब उद्भासित मुलायम भावसे विनयके साथ युवतीकी ओर था। हिल, मिसेज मूरके चचाका लड़का है। फिर कर कहा-"Thank you, madam." अर्थाभावके कारण वह बहिन क्लाराका पाणिग्र- यवतीने हँस दिया । दिवाकरके बागमें आकर हण नहीं कर सका था । अर्थवान् बूढ़े मूरसे उसने गुलाबकी तारीफ की, कृतार्थ युवकने शादी करनेपर भी युवती क्लारा फ्लारेन्सके प्रण- झटपट कछ गुलाब लेकर मेमसाहबको उपहारमें यको भूल नहीं सकी थी। सुविधा पाते ही वे दिये । युवतीने उसका धन्यवाद किया और दोनों एकान्तमें मिलते थे । वृद्धको इसका कुछ इधर उधरकी बातें करके अन्तमें कहा-“मेरे भी पता नहीं था ।
स्वामीका अन्तःकरण बड़ा सन्देहयुक्त है। ऐसा हिलने कहा-"इस बार तुमने दया न की तो न होता तो मैं आपको अवश्य अपने यहाँ बेतरह अपमानित होना पड़ेगा। तुमने उस दिन निमन्त्रित करती" निर्बोध दिवाकरने मानो स्वर्ग जो दिया था वह सब जाता रहा । कमसे कम पालिया। फिर मिलनेकी आशा देकर मूर-पत्नी एक सौ रुपया बिना मिले इज्जतका बचना बिदा होगई। असम्भव है।"
उक्त घटनाके सात दिन बाद मूर-पत्नीने क्लाराने कहा-“छिः फ्लारेन्स, तुम जुआ खेल- दिवाकरको फिर दर्शन दिये और उसको ना बन्द नहीं कर सकते ? इस बार कंजस बूढ़ा शामका भोजन करनेके लिए अपने स्थानपर ताड़ जायगा ।"
निमंत्रण दिया। दिवाकरने सोचा कि आज वृद्ध
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