Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 93
________________ IITHILIATILBOLLEm विविध प्रसङ्ग। ४१५ पाठशाला खोल दी जाय, या गत वर्ष कचनेरेमें लोगोंका खयाल है कि यह पर्युषण पर्व बहुत जो विद्यालय स्थापित हुआ है और जिसमें प्राचीन नहीं है। श्वेताम्बर-सम्प्रदायमें इस पर्वका सुनते हैं कि ६०-७० लड़के पढ़ने लगे हैं, उसोको बहुत माहात्म्य है। आश्चर्य नहीं जो उसकी यह सम्पत्ति दे दी जाय, अथवा इस सम्पत्तिसे देखदेखी ही दिगम्बर सम्प्रदायमें इसका प्रचार उसमें पढ़नेवाले बाहरके विद्यार्थियोंको १५-२० हआ हो। यह भी संभव है कि हमारी देखावृत्तियाँ नियत कर दी जायँ । कुछ भी हो, इस देखी श्वेताम्बर-सम्प्रदायने ही इसको ग्रहण कर सम्पत्तिका उपयोग दक्षिण महाराष्ट्रके लिए ही लिया हो । श्वेताम्बर-सम्प्रदायमें यह भादों वदी होना चाहिए । यही न्याय्य है और यही उचित १२ से प्रारंभ होकर सुदी ४ को समाप्त होता है । इसके विरुद्ध जो कुछ किया जायगा, वह है और दिगम्बरमें उसके दूसरे ही दिन सुदी अन्याय्य और अनुचित होगा। ५ से प्रारंभ होकर सुदी १४ को समाप्त होता ११ पर्युषण पर्व प्राचीन है या है । इस पर शास्त्रीजीने एक विलक्षण ही अनु__ अर्वाचीन ? मान लड़ाया है। आप कहते हैं कि हिन्दुओं मराठीका पुरानी मासिक पत्र 'जैनबोधक' ., और जैनोंके प्रायः जितने महापर्व हैं वे सब अब शोलापुरसे निकलने लगा है। श्रीयत सेठ शुक्लपक्षमें ही होते हैं । दिवाली, कृष्णाष्टमी जीवराज गोतमचन्द दोसी उसके सम्पादक आदि उन पर्वोकी बात जुदी है जो किसी महापुरुषकी जन्म-मरण तिथिके कारण माने नियत हुए है । आपके द्वारा उसके दो अंक- निकल चुके हैं और दोनोंही ठीक समय पर । . जाते हैं । इसके सिवाय जो पर्व जिस पक्षमें निकले हैं । आशा है कि अब यह पत्र नियमित शुरू होता है वह उसी पक्षमें समाप्त हो जाता कर रूपसे चलेगा और मराठीमें जैन मासिकके है; परन्तु श्वेताम्बर-सम्प्रदायका पर्युषण पर्व अभावकी पूर्ति करता रहेगा । इसके दूसरे अंकमें कृष्णपक्षमें प्रारंभ होता है और शुक्लपक्षमें समाप्त पं० बंशीधरजी शास्त्रीका एक लेख प्रकाशित हुआ । होता है । इससे कल्पना होती है कि यह पर्व है जिससे पर्युषण या दशलक्षणपर्वके सम्बन्धमें जब उन्होंने दिगम्बरोंकी देखादेखी शुरू किया एक नया प्रश्न उपस्थित हो गया है। शास्त्रीजीले हागा, तब उपायान्तराभावसे उन्हें ऐसा करना लेखसे मालूम होता है कि पर्युषण या दशलक्षण पर " पड़ा होगा । यदि वे दिगम्बरोंकी ही तिथियोंपर पर्वका प्रचार उत्तर भारत, गुजरात, राजपूताना करते, तो वह अनुकरण कहलाता और इसमें और मध्यप्रदेशमें ही है । दक्षिणमें यह केवल दूसरी भी अनेक अड़चने आतीं, और यदि पीछे उन्हीं स्थानोंमें माना जाता है जहाँ गुजराती या करते तो उधर पितृपक्ष शुरू हो जाता है जो मारवाड़ी लोगोंका संसर्ग है। कोल्हापुर, बेलगाँव, साधार गात साधारण जनताकी दृष्टिसे अशुभ माना जाता है। दक्षिण कानड़ा, मैसूर आदि प्रान्तोंमें इसका अतः दिगम्बरियोंके पहले ही उन्हें शुरू करना कोई नाम भी नहीं जानता है । दिगम्बर सम्प्र- पड़ा । इस तरह शास्त्रीजीने इस पर्वके सम्बन्धमें दायके प्राचीन शास्त्रोंमें भी कहीं इसका उल्लेख बहुतसी बातें कहीं है, परन्तु निश्चित रूपसे नहीं है। यत्र तत्र अष्टाह्निका पर्वका ही उल्लेख उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है । अर्थात् यह मिलता है । दक्षिण कर्नाटकमें अष्टाह्निकापर्व ही प्रश्न अभी खड़ा है कि पर्युषण पर्व प्राचीन है बड़े ठाठवाटसे मनाया जाता है। इससे बहुत या अर्वाचीन, और वह पहले दिगम्बरों में प्रचलित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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