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व्यास और भीष्म । fififimfiiftiiiiiiifittifull
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भीष्म-क्या कहा ऋषिवर त्याग ?
द्वितीय अंक, पंचम दृश्य । व्यास-हाँ, त्याग । देवताके चरणोंपर हँसते व्यास-मनुष्य हमेशा सुखके लिए पागल हँसते अपने सुखका बलिदान कर देना, बस बना रहता है और भोजन-पानमें, शयन-आसयही परम धर्म है और सनातन धर्म है। और सारे ।
नमें, घोड़ा-गाड़ीमें, मान-सम्मानमें, मूल्यवान् धर्म इसके सन्तान हैं।
वस्त्राभूषणोंमें और तरह तरहके व्यसनोंमें उसीको __ भीष्म-देवताके चरणोंमें अपने सुखका
ढूँढा करता है । परन्तु वास्तवमें देखा जाय तो
उसका पाना बहुत ही सहज, और सरल है। वह बलिदान ?
उसी तरह बिना परिश्रमके प्राप्त हो सकता है व्यास-हाँ, देवताके चरणों में अपने सुखका जिस तरह अपनी ही मुट्ठीमें चीज। बलिदान कर देना यही महाधर्म है।
भीष्म-सो कैसे? भीष्म- देवता कौन ?
व्यास-सुखकी विविध सामग्रियाँ यद्यपि हमारे व्यास-मानव ।
हाथमें नहीं है; परन्तु हम अपनी आवश्यकताभीष्म-लोग अपने सुखका बलिदान क्यों करें? ओंको तो कम कर सकते हैं । आमदनी भले ही व्यास-परम सुखकी प्राप्तिके लिए। न बढ़े, पर खर्चको तो घटा सकते हैं । उनका भीष्म-प्रभो ! वह सुख कौनसा है ? लाभ सुलभ नहीं है पर क्षति तो सहज है। व्यास-विवेककी जयध्वनि, आत्माका सन्तोष हमारी इस निरीह पर्णकुटीरको देखो ! कुशाका और मनुष्योंका आशीर्वाद। इन सुखोंको क्या आसन है, वृक्षके बल्कलोंके वसन हैं, फलमूतुम नहीं जानते ? त्यागमें जो शान्ति और सख लोंका हम भोजन करते हैं, और झरनेके स्वच्छ है वह और कहीं नहीं। उसके सामने स्वार्थसि
- जलका पान करते हैं । परन्तु बतलाओ हमारे द्विका सुख उसी तरह फीका पड़ जाता है जिस .
" यहाँ किस चीजकी कभी है ? मैं अपनी इस तरह सूर्योदय होने पर चन्द्रमा। स्वार्थका बलिदान
- फूसकी झोपड़ीका सम्राट् हूँ।
। करनेमें ही मनुष्यका जय है और यही सभ्यता
भीष्म-प्रभो! आप सम्राट्से भी बड़े हैं। को आगे बढ़ानेवाला है। इस महान् उद्देश्यको
के इस फूसकी झोपड़ीमें रह कर भी आप भारत
" वर्षका शासन करते हैं और इसी लिए मैं वीर सामने रखकर अपने कर्तव्यका पालन करनेमें ,
नम परशुरामका शिष्य और हस्तिनाका युवराज बड़ा सुख है देवव्रत !
भीष्म आज आपके द्वारपर ज्ञानकी भिक्षा माँगभीष्म-प्रभो ! मैं समझ रहा हूँ। नेके लिए आया हूँ। व्यास-चित्तको स्थिर करके इस मंत्रका व्यास-देवव्रत ! क्या अभीतक तुम्हारी ज्यों ज्यों जप करोगे, त्यों त्यों तुम उस महा ज्ञानकी प्यास नहीं बुझी है ? संगीतको, स्पष्ट, स्पष्टतर, स्पष्टतम रूपमें सन भीष्म-देव, ज्ञानकी प्यास क्या कभी
बझती है? सकोगे जिसमें कि सम्मिलित पृथिवीकी समस्त बुझत गीतध्वनियाँ एक साथ बज उठती हैं और जिस ।
व्यास-देवव्रत ! तुमने विषपान कर लिया सामगानका प्रारंभ वेणुके मन्दस्वरसे होकर अन्त
है। शीघ्र ही उसका इलाज करो।
भीष्म-इसका मतलब ? सिंगीके उच्छासमें जाकर होता है। अच्छा तो
___ व्यास-क्षत्रियका धर्म ज्ञान-विचार नहीं है; देवव्रत ! मंत्रका जाप करो।
रणक्षेत्र ही क्षत्रियकी कर्मभूमि है । जाओ, भीष्म-जो आज्ञा ऋषिवर!
विचार करना छोड़ दो और काममें हाथ व्यास-सन्ध्या होनेको आई है । चलो, अब लगाओ । विचारने और सोचनेके लिए हम लोग आश्रमके भीतर चलें । दोनों जाते हैं । हैं। जाओ, घर लौट जाओ।
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