Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 95
________________ SWA HIMAMITICLECTIOLLOOOO शिक्षितोंकी उदारता । SuTEREmirmirtifinittiritutti ४१७ इतनी अच्छी है कि यदि वे चाहें तो विद्यासं स्थाओंको खूब सहायता मिल सकती है । मैं शिक्षितोंकी उदारता। से ऐसे बीसों वकीलों, बैरिस्टरों और दूसरे शिक्षि तोंको जानता हूँ जिनकी आमदनी पाँच सौ से लेकर हजार रुपये मासिक तक है । यदि जैनसम्पादक महाशय, समाजके ये शिक्षित चाहें-अपनी आमदनीका आप अकसर अशिक्षित धनियों तथा सेठों- दशवाँ हिस्सा ही दान करने लगें-तो केवल पर कटाक्ष किया करते हैं और मौके-बमौके अपनी ही सहायतासे एक अच्छा कालेज चला उनकी हँसी उड़ाये बिना मानों आपको या आपके सकते हैं; पर उनमें इतनी उदारता हो तब न ? भाईबन्धुओंको चैन ही नहीं पड़ता है। शिक्षितों ___ जो अशिक्षित हैं वे विद्यादानके महत्त्वको विशेष करके अँगरेजीके पण्डितोपर-आपकी कुछ नहीं समझते हैं, समयको परखनेकी उनमें शक्ति अधिक कृपादृष्टि रहती है। परन्तु क्या आपने नहीं, इस लिए यदि वे अपना रुपया मन्दिरकभी अपने समाजके शिक्षितोंकी उदारतापर प्रतिष्ठाओंमें, अनाथोंके भरणपोषणमें, अतिथिविचार किया है ? यदि न किया हो, तो मेरे सत्कार आदिमें लगाते हैं तो लगाने दो, पर नीचे लिखे वक्तव्यपर दृष्टि डालनेकी कृपा कीजिए। शिक्षित तो सब कुछ समझते हैं । वे और सब जैनसमाजमें अभीतक जितनी संस्थाओंकी कामोंसे घृणा करते हैं-सबको बाहियात समझते हैं स्थापना हुई है; क्या आप जानते हैं कि उनका न क उनका तो समझें, पर अपना धन विद्याप्रचार में तो लगावें। संचालन किनकी उदारतासे हो रहा है ? इनके पर संसार देखता है कि वे नहीं लगाते हैं । लगा चन्देकी सूचियाँ निकालकर देखिए, उनमें आ भी नहीं सकते। क्योंकि अँगरेजी शिक्षाका सबसे पके प्यारे शिक्षितोंके नाम कितने हैं ? विद्यादा- बडा विष जो ऐहिकता-विलासिता है, वह उनकी नका मार्ग खोलनेवाले सेठ माणिकचन्दजीने ठ माणकचन्दजान नसनसमें व्याप्त हो गया है । उनके खर्च इतने कौनसी उच्च श्रेणीकी शिक्षा पाई थी ? हाईस्कू बढ़ रहे हैं; जरूरतें इतनी बढ़ गई हैं, शारीरिक लके लिए कई लाख रुपय लगानवाल सठ सुखसामग्रियोंमें उन्हें इतना खर्च करना पड़ता है कल्याणजीमलजा कानस कालजम पढ़ है . कि दानके लिए उनके पास कुछ भी नहीं बच सेठ हुकुमचन्दजीने कौनसा विद्याध्ययन रहता । अशिक्षित लोग ज्योनारों, ब्याहशादियों किया है ? अभी मोरेनाकी पाठशालाको आदिमें जो खर्च करते हैं, उससे जाति ३८ हजारका दान करनेवाले सेठ बालचन्द बिरादरीवालों तथा बन्धुबान्धओंको फिर भी कुछ रामचन्दजी भी तो न संस्कृतके पडित हैं लाभ होता है; पर इनकी विलायती सामग्रियोंका और न अँगरेजीके । आप कहेंगे कि हमारे तो एक पैसा भी देशमें नहीं रहने पाता है । समाजमें धनी लोग जितने हैं वे प्रायः अशिक्षित । हैं, इसलिए वे ही दान कर सकते हैं। किसी अशिक्षितोंकी अशिक्षितताकी जाहे जितनी अंशमें यह बात ठीक हो सकती है। परन्त निन्दा की जाय, पर उनकी उदारताकी तो प्रशंआपको यह भी स्मरण रखना चाहिए कि अँग- सा ही करना पड़ेगी। वे मेला प्रतिष्ठाओंमें, ज्योंनारेजीकी उच्च शिक्षा पाये हुए आपके शिक्षितोंमें भी रोंमें, अतिथि अभ्यागतोंमें, पूजा अर्चा में, मन्दिऐसे लोगोंकी कमी नहीं है जिनकी आमदनी रादि बनवानेमें जो लाखों करोड़ों रुपया खर्च Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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