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लाभालाभका विचार । कोर्ट या अदालतके द्वारा इन्साफ माँगनेमें और देशके नेताओंके द्वारा इन्साफ करानेमें क्या क्या हानि लाभ हैं, इस विषयमें हमें अपनी व्यापारी बुद्धिसे विचार करना चाहिए:
१ यह तो सभी जानते हैं कि सरकारी न्यायपद्धति बेहद खर्चवाली और अत्यन्त विलम्बबाली है । एक कोर्टमें बहुत समयतक मुकद्दमा चलता है, उसमें हजारों रुपया वकील बैरिस्टरोंको देना पड़ते हैं और अन्तमें दूसरी कार्टमें जाना पड़ता है । इसके बाद वहाँ भी हजारों लाखों रुपया फूंककर फिर उससे ऊँची कोर्टमें जाना पड़ता है । इस बेशु. मार खर्चके सिवाय दोनों पक्षवालोंको अपना जो बहुमूल्य समय खोना पड़ता है उसकी तो कुछ गिनती ही नहीं है । दौड़ धूप करनी पड़ती है और झंझटोंमें फँसना पड़ता है उसका भी कुछ हिसाब नहीं । इसके बदले यदि हम देशके नेताओंके द्वारा इन्साफ करावें, तो न अधिक समय लगे और न खर्च ही हो ।
२ कोर्टको कानूनकी दफाओंके माफिक ही चलना पड़ता है । यदि जजकी इच्छा भी हो कि मुझे इस प्रकारका फैसला करना चाहिए; तो भी कानूनकी दफाओंके आगे उसे मन मारकर रह जाना पड़ता है। कानूनकी बारीकियाँ सत्यको भी थोड़ी देरके लिए दबा दे सकती हैं, परन्तु यदि देशके किसी नेताके हाथमें यह न्यायका कार्य दिया जायगा तो वह ‘वालकी खाल निकालनेवाली ' कानूनकी बारीकियोंकी अपेक्षा सत्य घटनाओं पर अधिक ध्यान दे सकेगा । क्योंकि उसे कानूनकी बारीकियोंका बन्धन नहीं रहेगा-उसके लिए न्याय देनेमें सत्य और परमात्माका ही बन्धन रहेगा।
३ हमारे कई तीर्थ देशी राज्योंमें हैं और कई अँगरेजी सरहदमें । इन देशी और अँगरेजी राज्यके सभी न्यायदाता, हर मौके पर, अपने चरित्रबलको सम्पूर्ण तथा कायम रख सकेंगे, इस बातपर प्रत्येक मनुष्यसे विश्वास नहीं किया जा सकता । और विशेष करके उस समय जब कि रुपयोंका नहीं किन्तु ममताका प्रश्न होता है, इन्साफ करनेवालेके चारित्र पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जिन देशभक्त नेताओंने अपना जीवन देशको अर्पण कर दिया है, उनके दृढ चारित्रमें और उनके द्वारा न्यायके जरा भी खंडित होनेमें किसीको लेशमात्र भी डर नहीं हो सकता। क्योंकि एक तो वे किसी पक्षकी ओर झुक नहीं सकते और दूसरे उनमें कानूनकी जानकारी भी देशी राज्यों या सरकारी अदालतोंके न्यायाधीशोंकी अपेक्षा कम नहीं होती है। ऐसी दशामें शुद्धनिष्ठा और विशाल कानूनी ज्ञान इन दोनोंके संयोगसे इस बातकी हरतरह संभावना है कि उनके द्वारा वास्तविक न्याय मिलेगा ।
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