________________
नहीं, नहीं, कदापि नहीं ! एकता नहीं तो धर्म नहीं,
__ और धर्म नहीं तो दिगम्बर श्वेताम्बर भी नहीं ।
याद रखिए, कि लड़ना इसका अर्थ है दोनों पक्षोंका निर्बल पड़ना,
अथवा लड़ना इसका अर्थ है दोके हाथकी रोटी तीसरेको खिलाना । लड़कर जीतनेवाला पक्ष भी अन्तमें यही कहता है कि इसकी अपेक्षा तो चुपचाप ही बैठे रहते तो कम हानि उठानी पड़ती।'
धर्म, समाज और देशकी सेवाके लिए । कर्तव्य कार्य अनेकानेक पड़े हैं;
परन्तु
... धनका टोटा है, उदारताकी कमी है,
और इतने पर भी धर्मके निमित्त धन एकहाकरके उसमेंसे परस्पर युद्ध करोगे ?
नहीं सज्जनो, नहीं। दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों परस्पर हाथ मिलाओ
और संयुक्त हाथोंके बलसे सारे संसारको 'शासनप्रेमी' बनाओ! इसी भावना और इसी प्रार्थनाके साथ विराम लेते हैं हम
आपके धर्मबन्धुसेठ विनोदीराम बालचन्द ( झालरापाटन) रतनचन्द खीमचन्द मोतीचन्द जगमन्दरलाल जैनी एम. ए. बार-एटला (बम्बई-श्वेताम्बर संघके संघपति)
( जज हाईकोर्ट, इन्दौर ) देवकरण मूलजी अजितप्रसाद जैन एम. ए. एलएल. बी. गुलाबचन्द देवचन्द जवेरी __ (एडीटर, जैनगजट, लखनौ ) रतनचन्द तलकचन्द मास्तर लल्लभाई प्रेमानन्ददास पारेख, एल. सी. ई. लखमसी हीरजी मैशरी बी. ए. एलएल. बी. ए. बी. लढे एम. ए. एलएल. बी. खीमजी हीरजी कायाणी जे. पी. ए. पी. चौगुले बी. ए. एलएल. बी. अमरचन्द घेलाभाई
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org