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विविध प्रसड़। infinitrinting
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भवनकी बहुत बड़ी आवश्यकता है । यदि आदतको छोड़कर इसे मुफीद कामोंमें लगानेकी ऐलकजी महाराज इस महान कार्यको कर डालें आदत बनानेका प्रयत्न करें तो वे अपने देशतो उनका नाम जुगजुगके लिए अमर हो जाय। की भारी सेवा करेंगे। तब दुर्भिक्षका भी प्रबन्ध
हो जायगा । भारतमें सम्भवतः कोई फिका ऐसा भारतमें शिल्पकी आवश्यकता नहीं है, जिसने भारतकी तरक्कीके लिए इस कदर
भारतमें शिल्पके नए कारखाने खोलनेकी यत्न किया हो जितना पारसियोंने किया है । भारी जरूरत है । हम इस बारेमें भारतका इन्होंने अपनी पूँजीको कारखानों और तिजारतमें जापानसे मुकाबला करते हैं। जापानमें साधारण लगा रक्खा है। पारसियोंकी संख्या सारे भारतमें आदमियोंने जो ४० वर्ष पहले भारतनिवासि- केवल दो लाख है । तो भी यह अत्युक्ति नहीं योंसे न ज्यादा हुनरवर और न बुद्धिमान् थे, कि उन्होंने हिदुस्थानमें कारखाने खोलनेकी शिल्पके बहुतसे काम जारी किये और बीस तमाम दूसरे फिरकोंकी निस्बत ज्यादा कोशिश सालमें ही उन्नत हो गये । अब योरपकी तमाम की है । न उनमें कोई साधु है और न कोई चीजें अपने देशमें तैयार करते हैं । हिन्दके भिक्षा पर गुजारा करता है और न उनकी लोग भी तब तक सुखी न होंगे जब तक वह स्त्रियों में कोई वेश्या है। हालाँ कि अन्य तमाम शिल्पके क्षेत्रमें आगे न बढ़ेंगे और इस बातको फिर्कों और जातियोंकी वेश्यायें भारतमें अच्छी तरहसे अनुभव न करेंगे कि हिन्दुस्तानमें मौजूद हैं । क्योंकि इस गरीबीके कारण कई हर प्रकारके कारखाने खोले जायँ और उनको ऊँची जातोंकी स्त्रियाँ वेश्या बन गई हैं। इन सब तरक्की दी जाय । तब भारत अपनी प्राचीन खराबियोंका इलाज यह है कि देशमें हर प्रकाउन्नतिको प्राप्त करेगा । आज कल हमारे इस्ते- रके कारखाने हिन्दुस्तानी पूँजीसे जारी किये मालकी हर एक वस्तु विदेशसे मँगवाई जाती जायँ और उनकी तरक्की के लिए भारतीयोंको है। आज तक जिस कदर कारखाने खोले गये दृढ निश्चय कर लेना चाहिए और अपने देशकी हैं उनसे बहुत तो विदेशके रुपयेसे खोले गये बनी हुए चीजें इस्तेमाल करना चाहिए। हैं। इस प्रकारके कारखानोंसे भारतको कोई
-टहलराम गङ्गाराम। लाभ नहीं पहुँचता; क्योंकि विदेशके रुपयोंसे कारखाने चलानेमें सब लाभ देशके बाहर चला
९ भूषण पहनानकी कुरीति । जाता है । जरूरत इस बातकी है कि हिन्दुस्तानका अपना रुपया कारखानोकी तरक्कीमें लगे। हमारे पाठकोंसे यह अविदित न होगा कि भारतमें निस्सन्देह धन मौजूद है परन्तु वह '
- भूषण पहनानेके कारण अनेक कोमल-हृदय लाभदायक कामोंमें नहीं लगाया जाता । यदि बच्चोंको समयसे पहले ही कालका ग्रास होना यह रुपया शिल्प कारखानोंमें लगाया जाय, तो पड़ता है जिसका प्रमाण हमें पुलिसकी रिपोइन कारखानोंकी बहत तरक्की होगी और साथ टैसे भली भाँति मिलता है । अतः हमारे उन ही देशका धन भी बढ़ेगा, और अवस्था भी भारतीय नेताओंको भी शीघ्र इस प्रश्नकी ओर सुधर जायगी। यदि हमारे राजे महाराजे और अपना ध्यान आकर्षित करना चाहिए, जो जागीरदार और धनाढ्य अपने रुपयेको व्यर्थ समय समय पर भारतकी दरिद्रताका राग दबाने या स्त्रियोंके भूषण बनानेकी पुरानी अलापा करते हैं; क्योंकि हमारे देशवासियोंका
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