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mmmmmmmm जैनहितैषी
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विश्वास ।
जाय तब तक इस प्रकारकी अहिंसाकी शिक्षा । को नवीन भारतके बिना अनुसरण किये हुए ही आविवेचनीय सत्यताकी भाँति रह जाना चाहिए । मि० गाँधी, पूर्ण कल्पनाका संसार रचा चाहते हैं । वास्तवमें वे ऐसा करने और दूसरोंसे कहनेके लिए भी स्वतन्त्र हैं, पर उसी भाँति यह मेरा भी कर्तव्य है कि मैं उनकी गलतियोंको बतलाता चलूँ । ( मर्यादासे )
(ले०-श्रीयुत प्रेमी हजारीलालजी!)
(१) जिस सुहीतलमें हुई,
विश्वासकी जाज्वल्यता ! सूखते देखी नहीं,
उसकी कभी आशालता।। . . . डूबते हृदयोंको देता,
है बहुत ऊपर उठा ॥ दान करता है निराशों___को बड़ी उत्फुल्लता।
चाहे तुम्हारे रास्तेमें कितने ही विघ्न उपस्थित हों और कितनेही दुःख और कष्टोंको तुम्हें भोगना पड़े तो भी सदा प्रसन्नचित्त रहो। उदास और निराश कभी मत होओ। विचारो, जब तकलीफें तुम्हें चारों तरफसे घेर रहीं हों, उस समय यदि तुम निराश हो जाओगे और अपने चित्तकी प्रसन्नताको खो बैठोगे तो क्या तुम्हारी तकलीफें घट जायगी ? कदापि नहीं, उल्टी बढ़ जायगीं । तकलीफोंका दुःख कौन कम है, उस पर उदास होकर क्यों अपने दुःखको दुगना करते हो? यदि तुम अभी नवयुवक हो, तो प्रकृतिने तुम्हें हँसमुख बनाया है। यदि तुम देखो कि तुम्हारी लक्ष्मी, कीर्ति, अथवा अन्य किसी वस्तुकी प्राप्तिमें कुछ कठिनाई या कंटक है तो इसे अपने लिए अच्छा समझो। ये कठिनाइयाँ तुम्हारे मार्गमें जानबूझकर डाली गई हैं कि जिससे तुम और अधिक श्रम करो और तुममें सहन शक्ति आधिक बढ़े। यह अच्छा है और जियादा अच्छा है कि तुम तमाम उमर प्रसन्नचित्त रहते हुए श्रम करते रहो, और तुम्हारी इच्छा
ओंकी कभी पूर्ति न हो, बजाय इसके कि आपत्तिके पहले पहल आते ही निराश हो जाओ और वह निराशा तुम्हारे साहस और उत्साहको भंग कर दे
और तुम्हारे चित्तकी स्वाभाविक प्रसन्नताको नष्ट कर दे । यदि तुम्हारा स्वभाव नर्म और मुलायम है तो तुम्हें प्रसन्न रहना ही चाहिए । यद्यपि हम भलीभाँति जानते है कि निराशा और असावधानताकी अपेक्षा तुम अनेक दुःखोंको सहर्ष सामना कर सकते हो तथापि तुम्हें चाहिए कि निराशाको आशामें बदल दो। उन बातोंका व्यर्थ चितवन करके अपने समयको नष्ट मत करो जो तुम्हें हासिल नहीं हुई। प्रकृति तुम्हें हर्ष और आशाका स्रोत बनाया है, न कि शोक और निराशाका ।
कार्यकृत होता नहीं,
जिसमें नहीं विश्वास है। काम करनेके लिए, ___ उसको बड़ा अवकाश है। धर्मकी है जड़ यही,
यह नीतिका भी प्राण है। वीरजनका बाहुबल है,
साधुओंका ज्ञान है ।।
सिंहको बकरी लखे,
बकरा बने बनकेसरी। रेतमें बिन तोयके,
रक्खे सदा खेती हरी॥ नास्तिता यदि व्यक्तियोंकी,
स्वत्वरक्षक हो तो हो। जातियाँ विश्वास बिन, सर्वस्व ही देती हैं खो॥
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