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जैनहितैषीpermTHITIRITUAmiti
कठिनाई यह हो रही है कि जैनधर्मकी लिस्वामीकी प्रतिमाके बनवानेवाले और गोम्मअहिंसाका स्वरूप लोगोंने कुछका कुछ समझ टसार सिद्धान्तकी 'कर्नाटकी वृत्ति ' लिखनेवाले लिया है और उसी समझके अनुसार उस पर चामुण्डराय भी बड़े वीर थे। वे गंगवंशीय आक्षेप किये जाते हैं। पर यह आक्षेप-कि जैन- राजा राचमल्ल (ई०९८४-९९९) के मंत्री थे। धर्मकी अहिंसाने लोगोंको निर्बल साहसहीन या उनकी समरधुरंधर, वीरमार्तण्ड, रणरंगसिंह, कर्तव्यच्युत बना दिया-वैसा ही भित्तिहीन है वैरिकुलकालदण्ड , सगरपरशुराम, प्रतिपक्षराजैसा कि जैन-धर्मको बौद्धोंकी शाखा मान- क्षस आदि पदवियाँ ही उनकी न्यायोचित हिंसानेका विश्वास था। एक दिन आयगा जब लोग प्रियता या युद्धपटुताकी गवाही दे रही हैं । अपने इस भ्रमको जैन और बौद्धसम्बन्धी भ्रम- गोविन्दराज, बेंकोंडुराज आदि अनेक राजाके ही समान छोड़नेके लिए लाचार होंगे। जैन- ओंको उन्होंने युद्ध में हराया था । इस पर भी धर्मने आहिंसाको इस ढंगसे साधा है कि उसकी ये जैनधर्मके अन्यतम श्रद्धालु और चरित्रवान्थे पालना किसी भी अच्छे कार्यों रुकावट नहीं और इस कारण सम्यक्त्वरत्नाकर, सत्ययुधिष्ठिर, डाल सकती है। एक पक्का जैनी सबलोंके हाथसे शौचाभरण आदि उच्च श्रद्धा-चारित्रसूचक निर्बलोंकी रक्षा करनेके लिए, और न्यायकी पदवियोंसे विभूषित थे । इनके सिवाय कर्नाउच्चता कायम रखने के लिए बड़ेसे बड़ा युद्ध कर टकमें नागवर्म, जन्न, पंप, कीर्तिवर्मा आदि सकता है, लाखों आदमियोंका खून बहा सकता बीसों कनड़ी कवि ऐसे हुए हैं जो अनेक जैनहै, बड़ेसे बड़े कलकारखाने खोल सकता है, ग्रन्थोंके कर्ता होने पर भी मंत्री, सेनापति, राजा कृषि जैसा हिंसापूर्ण कार्य कर सकता है और आदि युद्धव्यवसायी रहे हैं । गृहस्थोंमें तो ठीक यह सब करके भी वह अपने दर्जेसे नहीं ही है; वहाँ तो कई जैनसाधुतक ऐसे गिर सकता है। इस तरहकी कथाओंसे-जिनमें हुए हैं जो राजाओंके यहाँ कटकोपाश्रेष्ठ गिने जानेवाले जैनक्षत्रियोंने भीषण युद्ध ध्याय या युद्धविद्याके शिक्षक रहे हैं । इन किये हैं और फिर भी वे स्वर्गवासी हुए हैं-जैन- बातोंको सविस्तार जाननेके लिए हमारे लिखे हुए सम्प्रदायके पुराणग्रन्थ तो भरे हुए हैं ही, साथ 'कर्नाटक-जैन कवि' या कनडीभाषाके 'कर्नाही भारतवर्षके प्रामाणिक इतिहासमें भी टककविचरित्र' को देखना चाहिए । अभी ऐसे दृष्टान्तोंकी कमी नहीं है। विक्रमकी नौवीं अभीतक जैनोंमें युद्धव्यवसायी रहे हैं । जैनशताब्दिमें राष्ट्रकूटवंशके सुप्रसिद्ध महाराजा हितैषीके पिछले अंकोंमें बच्छावत भंडारी आदि अमोघवर्ष ( प्रथम ) जिनका राज्य उत्तरमें जैनकुलोंका इतिहास प्रकाशित किया गया है, विन्ध्याचल तथा मालवा तक और दक्षिणमें उससे इस बातका खासा प्रमाण मिलता है। ये तुङ्गभद्रातक फैला हुआ था, बड़े भारी योद्धा थे। लोग राजपूतोंके ही समान वीर थे और अनेक उन्होंने चालुक्य गंग आदि अनेक वंशके राजा- युद्धोंमें लड़े थे । राजपूतानेके जयपुर आदि
ओंको युद्धमें मारा था । दक्षिणके अनेक शिला राज्योंमें जैनमंत्री अबतक रहे हैं और उनमें लेखोंमें उनकी वीरताके गीत मौजूद हैं। इस अनेकोंने बहादुरीके कार्य किये हैं । ये सब वंशमें और भी कई जैन राजा हुए हैं जो बड़े उदाहरण यह जाननेके लिए काफी हैं कि जिस बहादुर थे। श्रवणबेलगुलकी प्रसिद्ध बाहुब- प्रकार शत्रुसे अपनी या अपने आश्रितोंकी
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