Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 79
________________ CALMITABILIBHIARMINORAMMAMIRMIRAHAMITHAATAMIL तीर्थोके झगड़े कैसे मिटें । ४०१ जोरदार आवाजसे करने लगे हैं, उस समय लोगोंकी आयु तपस्या करते करते पूर्ण हो लगभग ८-१० लाख जैनधर्मानुयायी भारत- जायगी वे सब स्वर्गलाभ करेंगे! वासी अपने इस आचरणसे यह बतला रहे हैं यदि हमारे भाईयोंमें इतना धैर्य न हो, वे कि हम लोग अपना धार्मिक और सामाजिक झटपट इस पार या उस पार ही हो जाना चाहते राज्यतंत्र भी स्वयं नहीं चला सकते हैं-विदेशी हो. तो उनके लिए दूसरा रास्ता यह है कि दोनोंविधर्मी सरकारको बीचमें डाले बिना हमारा को आमने सामने आकर इस तरह लड़ना काम ही नहीं चल सकता है । हमारा यह कार्य चाहिए कि उससे हारनेवाले और जीतनेवाले हमारी स्वराज्यसम्बन्धी आशा पर निराशाका दोनोंही अन्तमें लाभमें रहें । यह लड़नेकी रीति काला बादल छा देता है। उसी प्रकारकी होनी चाहिए जैसी मन्दिरोंमें हमारे जैनभाइयोंको चाहे जिस तरह होचाहे जो हानि उठाकर हो, यदि जीत ही प्राप्ति आरतीके घीकी या फूलमाल आदिकी बोली बोलते करनी है, तो उन्हें कोर्टोसे तो जीतकी आशा समय काममें लाई जाती है । जिस स्थलपर छोड़ ही देना चाहिए-वहाँसे वह तो मिल ही झगड़ा हो उस स्थलके पूजा करनेके हककी बोली बोलो । यह बोली एक लाखसे कम रकमनहीं सकती है। अब रहे और और मार्ग, सो १ उनमेंसे एक तो यह है कि दोनों पक्षके मखि- स शुरू न होनी चाहिए और एक बोलीमें पच्चीस याओंको झगड़ेके स्थानोंमें विराजमान रहनेवाले हजारसे कमकी रकम आगे न बढ़ानी चाहिए । भगवानके आगे तपस्या करने के लिए बैठ जाना जो पक्ष सबसे अधिक रकम दे उसीको पूजा चाहिए और अपनी तपस्याके जोरसे भगवान- करनेका स्वतंत्र हक दिया जाय और यह रकम को बुलाना चाहिए तथा कहना चाहिए-"प्रभो! दोनों समाजोंके युवकोंकी शिक्षावृद्धिमें खर्च तुम्हारे लिए तो हम लड़लड़कर थक गये और काज की जाय । तुम दया-मयारहित होकर सिद्धलोकमें .जा यदि यह मार्ग पसन्द न हो तो अन्तमें छुपे हो ! दया करके थोड़ी देरके लिए तो यहाँ तीसरा और अतिशय महत्त्वका मार्ग यह है कि आ जाओ और बतला दो कि इस स्थानपर पूजा भारतके जितने प्रसिद्ध प्रसिद्ध नेता हैं उनमेंसे करनेका हक किसको है ? साथ ही साथ यह किसी एकको अथवा दोको पसन्द करके उनके भी बतला दो, जिससे आगे पुराने ग्रन्थोंके लौटने हाथमें यह मामला दे देना चाहिए और वे जो -पलटनेकी और सुबूत ढूँढनेकी खटखटसे भी कुछ फैसला करें उसे हमेशाके लिए स्वीकार छुट्टी मिल जाय कि पहले श्वेताम्बर हैं या कर लेना चाहिए । लोकमान्य श्रीयुत बालगंगाधर दिगम्बर ? " जब तक भगवान् सिद्धशिला तिलक और महात्मा गाँधी आदि सज्जन ऐसे हैं छोड़कर न आवें और खुलासा न कर जायँ तब कि इनके द्वारा पक्षपात या अन्याय नहीं हो तक दोनों ही पक्षवाले तपस्या करते रहें। इस- सकता। ये दोनों ही पक्षवालोंको सन्तुष्ट कर सकेंगे। से एक तो लोगोंके रुपयोंका पानी बनना बन्द जैनसमाजके गौरवको रख सकेंगे और भारतके हो जायगा और कदाचित्, भगवानने पधारनेकी हितकी रक्षा कर सकेंगे। इस अन्तिम सूचनाको या खुलासा करनेकी कृपा नहीं की, तो जिन माननेके लिए जो तैयार न हों, उन्हें पक्का देश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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