Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 81
________________ तीन देवियोंका संवाद । __ [ले०, श्रीयुत बाबू मित्रसेनजी जैन । ] १ लक्ष्मीः (१) खबरदार कोई चूँ मत करना, मेरा है संसार। मेरा ही अधिकार जगतमै, मैं ही हूँ सर्दार ॥ बड़े बड़े गढ़ कनक भवन सब, मेरे ही हैं खेल। फैल रही है अखिल लोकमें, मेरे यशकी बेल ॥ आँख उठाकर जिसको देखू, दममें हो खुशहाल । कपा विना मेरी फिरते सब. भूखे औ कंगाल। बड़े बड़े विद्वान वीर वर, रटते मेरा नाम । चलता है मेरे ही बल पर, सारे जगका काम ॥ जर्मन अमरीकाको देखो, ब्रिटिन चीन जापान । मेरी चरण-रेणुको पाकर, कहलाते धनवान ॥ वहाँ राकफेलर जैसे हैं, अगणित मेरे दास । यहाँ बिना मेरे भारतके, होते नित्य उपास ॥ (४) एक समय भारतने मेरा, किया बहुत अपमान। इससे देखो आज बना यह, घोर दुःखकी खान ॥ चलो हटो सब, यह निश्चित है, में सबकी सरताज। मेरी नाममालिकाको ही, फेरे सकल समाज ॥ २ शक्तिः -- यह क्या, यह क्या, क्या बकती है ओ गरबीली नार। क्या तू बस हो गई बड़ी, कर लेनेसे शृङ्गार ॥ झूठ सरासर बकनेवाली, मत कर तू अभिमान । मेरे आगे खड़ी न होना, दिखलाने अज्ञान ॥ नहीं जानती जिस दिन मेरी, कुटिल भवें चढ़ जाती। ..तू दबती फिरती है सम्मुख, मेरे कभी न आती ॥ मैं इक छिनमें सारे जगको, तहस-नहस कर डालूँ। चाहे जिसे बनाऊँ राजा, चाहे जिसे निकालूँ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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