Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 70
________________ FARAHATMAITATI O HIRALALITARY. जैनहितैषीaffitimummITATION S था। विदेशमें आकर यौवमसुलभ अध्यवसायके [१२] साथ परिश्रमके द्वारा रुपया पैदा करके सभी दिन भरके सब कामोंसे निवृत्त होकर दिवाबंगाली अपने अपने देशको लौट गये थे। उन- कर बाबू अपने सजे हुए कमरे में बैठे बेहाला मॅसे कोई होता तो सम्भव था कि दिवाकरका बजा रहे है । बहालाका स्वर क्रमशः उत्तरोत्तर रहस्य खुल जाता, पर उनमेंसे किसीके न होने चढ़ रहा है। इस संगीतसुधासागरमें दिवाकर स लाहारवासी बंगाली दिवाकरके सम्बन्धम मन उनके चरणों में बैठा हुआ उनके चेहरे की ओर बाबू खब मग्न हो रहे हैं । एक काला बिलाव माना सिद्धान्त बनाकर अपना अपना कौतूहल एकटक दृष्टिसे देख रहा है । वह कभी कभी निवारण कर लेते थे। अपनी आँख मूंद लेता है। बाहर पिंजरबद्ध ___एक दिन आशुघोषने कहा-" आज कुछ बुलबुल बेहालेके स्वरमें स्वर मिलानेकी व्यर्थ ही क्यों न हो, दिवाकरका पूर्ण परिचय प्राप्त चेष्टा कर रहा है। बुलबुलका स्वर जरूर आनकरेंगे ही ! " इतना बड़ा कार्य अकेले सम्पादन न्दमय है । उसको सुनकर हृदय फड़क उठता करना मुश्किल है यह निश्चय करके आशुघोष है । दिवाकरके बेहालेका स्वर करुण और मर्मसतीशचन्द्रके पास पहुंचा। स्पर्शी है । उसको सुनकर हृदय स्तब्ध हो जाता उसके प्रस्तावको सुनकर सतीशने कहा- है और चित्तकी वृत्तियाँ नीरस हो जाती हैं। "भाई, किसी बड़े आदमीसे इस तरहका इसीलिए आशु और सतीश खुशी खुशी घरमें व्यक्तिगत प्रश्न करना अच्छी बात नहीं है। आकर भी संगीत सुनकर स्तब्ध हो गये हैं : दूसरे जब दिवाकर बाबू अपनी स्थिर और दिवाकरने उनको देखा तक भी नहीं । भावहीन आँखोंसे मुझे देखते हैं सच कहता हूँ बिलाव भी अपने मालिककी निस्तब्धता भंग तब मेरा दिल ठण्डा पड़ जाता है। " होनेके भयसे उनको देखकर फर्शपर लेट गया ! __ अपनी बड़ी बड़ी मूंछोंपर हाथ फेरते हुए दिवाकरने पीछे फिर कर देखा कि दो भद्रपुरुष उससे मिलनेके लिए बाहर खड़े हुए हैं। आशुघोषने कहा-“ क्या तुम मुझे निरा भोला ___ अप्रतिभ दिवाकरने झटपट बेहाला रखकर बालक समझते हो ? हमने पहलेसे ही बहाना - कहा-“ बड़े सौभाग्यकी बात है । एक साथ बना रक्खा है।" । दोनोंने कृपा की है । क्षमा कीजिए, मुझे आपके ___ सतीशने कहा—“ कैसा बहाना है सुनाओ [ आनेका शब्द भी नहीं सुनाई दिया।" तो सही।" आशुने कहा-" हम तो बाजा सुन रहे आशुने कहा-" हम कहेंगे कि हमसे कल- थे। आपने बजाना बन्द क्यों कर दिया ?" कत्तेके एक समाचारपत्रने लाहोरके सबसे बड़े दिवाकरने कुछ हँसकर कहा- “समय बंगालीका जीवनचरित माँगा है । हमारे लाहोरी काटनेके लिए कभी बजा लेता हूँ।" बंगालियोंमें दिवाकर ही धनमें, मानमें, दयामें बातचीत होने लगी। दोनों युवक साहस और सहृदयतामें सबसे बढ़कर हैं। यदि वास्तविक करने पर भी अपना अभिप्राय नहीं कह सके । हाल मालूम हो गया तो समाचारपत्रमें छपवाया सतीशने चुपकेसे आशुसे कहा-“ मतलबकी भी जा सकता है।" बात क्यों ___ सतीशचन्द्रने आशुकी बुद्धिकी बड़ी तारीफ की. आशुने बड़ी मुश्किलसे अपने मनका भाव और वह स्वयं वस्त्र पहननेके लिए चला गया। प्रकट किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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