________________
३९४
सँभालकर कहा - " आपके स्वामीको सब कितना रुपया देना है ?"
क्लाराने कहा - "बाबू, इसकी बात क्या पूछते हो; कोई तीन हजार रुपये देना है । "
जैनहितैषी ।
उसकी बातका उत्तर न देकर दिवाकर बाबूने चेक-बहीसे तीन हजारका एक चेक फाड़कर हिलसाहबको दे दिया। सभी विस्मित हो गये ।
हिल साहबने कहा- "बाबू, मैं आपकी दयाका उपयुक्त पात्र नहीं हूँ। मैं बड़ा पापी हूँ--इस रमणीके प्रेममें पड़कर मैंने अनेक पाप किये हैं ।" क्लाराका चेहरा रक्तहीन गया। दिवाकरने कहा - " इसके पहले स्वामीका नाम मूर है ? " विस्मित क्लाराने कहा - " हाँ । ”
66
मधुपुर में रहता था ?
21
हिलने कहा - " आपने किस तरह जाना ?” दिवाकरने क्लारासे कहा - " मेम साहब, मुझे पहचानती हो ? झूठे अपवादमें, अपना पाप छिपाने के लिए जिसका सर्वनाश करनेमें जरा भी संकोच नहीं किया था उसको अब भी पहचानती हो ? इहकाल और परकाल माननेवाला मैं असभ्य हिन्दू हूँ । तुम्हारे आशीर्वाद से ही मेरे पास इतनी सम्पत्ति है । आज उसीका मूल्य स्वरूप यह साधारण प्रतिदान किया है ।”
दिवाकरकी बात समाप्त होते न होते क्लारा पृथ्वीपर गिर पड़ी । दिवाकर उठकर दूसरे कमरे में चला गया । हिलकी क्लाराके ऊपर विरक्ति दुगनी होगई ! उसने सोचा- इस बोझ के बिना दूर हुए रक्षा नहीं है ।
आशु और सतीशने बड़े यत्नसे क्लाराकी मूर्छाको दूर किया । क्लाराके चले जानेपर सतीशने कहा - " भाई क्या मामला है ! "
Jain Education International
आशुघोष मूँछ मरोड़ते मरोड़ते बोले- “हाँ, दिवाकर वास्तवमें ही कुमार हैं । फिर भी हमारी थियरी एकदम निर्मूल नहीं है । मूलमें बंगाली और मेमका मिश्र प्रेम है जरूर । ”
अहिंसा परमो धर्मः ।
[ ले०-श्रीयुत लाला लाजपतराय
कोई धर्म सत्यसे उच्चतर नहीं और न ' अहिंसा परमोधर्मः' से बढ़कर कोई जीवन की चर्या ही है । 'अहिंसा परमो धर्मः' की उक्ति ठीक ठीक समझी जाकर व्यवहृत की जाय तो वह मनुष्यको पूर्ण साधु और वीर बना देती है । ठीक ठीक अर्थ न समझने और दुरुपयोगसे वही मनुष्यको कायर, डरपोक, पतित और मूर्ख भी बना देती है । एक समय ऐसा था जब कि हिन्द इसे ठीक ठीक समझते और इसका उचित उपयोग भी करते थे। उस समय वे एक सत्य-प्रेमी जातिके सुपुरुष और वीर मनुष्य थे। तत्पश्चात् एक ऐसा समय आया, जब कि कुछ सुपुरुषोंने पूर्ण शुभ भावसे और साधु विचारसे इस कल्पनाका रूप दिया। उन्होंने केवल इसे अन्य सब धर्माचरणोंसे ऊपर ही नहीं रक्खा, वरन् श्रेष्ठजीवनकी उसे एक मुख्य कसौटी भी बनाई। उन्होंने केवल अपने जीवनहीमें इसका अतीव उपयोग नहीं किया, वरन् अन्य सब वस्तुओंकी सगोचरता पर भी इसको एक महान जातीय धर्मका रूप दे डाला । अन्य सब धर्माचरण, जो जाति तथा मनुष्यको उच्च बनाते हैं, तुच्छ समझ पीछे छोड़ दिये गये ! क्योंकि उत्कृष्टता के विचारसे अहिंसा ही सबसे उच्च मानी गई। श्री । साहस, वरिता और शूरता सब किनारे रख दिये गये । देशभक्ति, मातृभूमि-प्रेम, कुटुबीजन-स्नेह और जाति-सन्मान आदि सब भुला दिये गये ।
इसका कारण अहिंसाका दुरुपयोग अथवा अन्य सब वस्तुओंको निकृष्ट समझने के कारण
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org