Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 71
________________ CLAIIMCIATITHILIATIMILIATIL प्रतिदान । SummiutifultititimitunfittimfimE ३९३ दिवाकरने हँसकर कहा-“ धनवान होनेसे रमें सौन्दर्ययका कुछ अंश बाकी है । अब और समाजमें भी बड़ा होजाय यह बात तो नहीं है। किस विपत्तिका सूत्रपात होता है-मालूम नहीं। हम और हमारी जीवनी ही क्या !" क्लाराने दिवाकरको नहीं पहचाना । इन इसी समय नौकरने आकर कहा कि “ एक दई सालोंमें उसकी मानसिक स्थितिमें विशेष मम और एक अँगरेज आपसे मिलना चाहते हैं। परिवर्तन हो गया था । उसके नवनीत सम कोमकाम पड़नेपर दिवाकर बाबू अंगरेज पुरुषसे तो ल वक्षःस्थलपर एक लम्बा वस्त्र पड़ा हुआ था । कभी कभी मिल लेते थे: पर आज २० वर्षसे उसके माथे पर चिन्ताकी रेखा स्पष्ट दिखाई पड़ती उन्होंने किसी मेमकी ओर देखातक भी नहीं था। थी। उसके चंचल कमल-नयन इस समय स्थिर नौकरसे कहा- .जरूरत हो तो साहब आकर गम्भीर और एक प्रकारके दुःखभावसे पूर्ण थे । मिल सकता है; मेमसे में मिलना नहीं चाहता।" दिवाकरके परिचित स्वरमें क्लाराने कहा आशु और सतीशने एक दसरेकी और देखा। बाबू, बड़ी विपत्तिमें फँसकर आज हम स्त्री नौकरने आकर कहा-" मेम साहब बिना आ * पुरुष आपकी सेवामें उपस्थित हुए हैं। हमने पसे मिले किसी तरह जाना नहीं चाहतीं।" सुना है लाहोरमें आप जैसा कोई दानी नहीं है -इसी लिए हम आपके पास भिक्षार्थ आये हैं।" _ दिवाकर बड़ी झंझटमें पड़ गये । मौका मालूम होता है कि अपनी भूमिकासे दिवापाकर आशुघोषने कहा-"हर्ज क्या है, मिल लीजिए क्या कहती हैं ?" करके हृदयपर कुछ प्रभाव पड़ा या नहीं, यह ___ यदि ये लोग इस समय नहीं होते तो दिवा बात देखनेके लिए वे दोनों कुछ देरके लिए कर बाब किसी तरह भी मेमसे मिलना पसन्द आश्चर्यसे देखने लगा । उनके मुंहकी ऐसा । चुप होरहे । आशुघोष दिवाकरके मुँहकी ओर नहीं करते । पर इन दोनोंके सामने इनको मज- आकृति उसने न देखी थी। बरन मेम साहबको मिलने के लिए बुलाना पड़ा। रमणीने फिर कहना आरम्भ किया- "बाबू, आश और सतीशको जानेके लिए उठते देख दिवा- मेरा स्वामी रेलका गार्ड है। अपने पहले स्वामा करने कहा-"महाशय, आप बैठिए। इन लोगोंसे के मरने पर मुझे बहुत धन मिला था। मुझे एकान्तमें मिलना मैं अच्छा नहीं समझता।” कहते लज्जा मालूम होती है कि जुएम हिलने ___ सतीशने आशुको बैठनेके लिए हाथसे संकेत वह सब रुपया नष्ट कर दिया । अपनी फिजूलकिया। आशु मूंछके अग्रभागको मरोड़ते हुए वर्चीके कारण यह इस समय इतना ऋणग्रस्त साहबके कार्डको पढ़ने लगा, उसमें लिखा था- हो गया है, कि सारी लाइनमें इसको एक पैसा 'फ्लोरेन्स हिल ।' भी कर्ज नहीं मिल सकता । अब एक आदमी- धीरे धीरे फ्लोरेन्स हिलने कमरेमें आकर दि- की पाँच सौ रुपयकी डिग्रीमें उसको कल जेल वाकरका सलाम किया। उसके पीछे एक अधेड़ जाना होगा । बाबू, इस अपमानके सामने आप उम्रकी स्त्री थी-जिसको देखनेसे मालम होता था जैसे महानभाव सज्जनसे भीख मॉमना अच्छा है कि वह एक दिन जरूर सुन्दरी होगी। उसको इसी लिए हम आपकी सेवामें आये हैं।' देखते ही दिवाकर चकित होगया । दिवाकरने हिल-पत्नी चुप हो गई। आशुघोषने देखा कि मन-ही-मन कहा-मालूम होता है यह वही पा. दिवाकरके चेहरे पर भी चञ्चल भावकी जगह पिष्ठा है । पिशाची गक्षसी ! अजनी के शो गंभीर भाव आगया है। दिवाकरने तबीयतको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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