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पुस्तक-परिचय।
अच्छी पुस्तक है । इसका खूब प्रचार होना कौन कौन हैं, उनके अधिकार क्या हैं; और भार चाहिए। कमसे कम हमारी शिक्षासंस्थाओंके चलाने- तसरकारके साथ उनका क्या सम्बन्ध है, बड़े वालोंको तो इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। लाटकी कौसिल क्या करती है, उसके काम कर
नेका ढंग क्या है, बड़े लाटके अधिकार क्या हैं, १० नाममाला।
प्रान्तीय सरकारें कौन कौन हैं, उनके शासकोंके महाकवि धनंजयका बनाया हुआ यह एक अधिकार क्या हैं, जिलोंका शासन कैसे होता है, २०० श्लोकोंका छोटासा कोश है । साथ ही ४५
म्यूनीसिपालिटियाँ, देहाती बोर्ड, आदिका स्वरूप श्लोकोंका एक नानार्थ कोश है । जो विद्यार्थी
क्या है, सरकारी आयव्यय, देशीरियासतें, फौज अमरकोश जैसे बड़े कोश कण्ठ नहीं कर सकते
और पुलिस, न्यायविभाग, जेल, शिक्षाप्रचार, वे इसे कण्ठ करके कोशका काम निकाल सकते
स्वास्थ्यरक्षा और रेल, नहर सड़कें आदि सार्वहैं। इसे पं० घनश्यामदासजीजैनकृतसरलाहन्दा जनिक कार्य कैसे चलते हैं तथा महाराणी विक्टोअर्थसहित श्रीयुत बंशीधरजी मास्टर ललितपुर रियाने हमें क्या क्या वचन दिये थे । इस पुस्त(झाँसी) ने प्रकाशित कराया है। पुस्तकक कोपट लेनेसे उक्त सब बातोंका साधारण ज्ञान अन्तमें शब्दोंकी अनुक्रमणिका दे दी गई है, जो हो जायगा और पाठक राजनीतिक चर्चामें प्रवेश बहुत उपयोगी है । पुस्तकमें छोटे साइजके १००
करनेके अधिकारी हो जायेंगे । लेखक महाशयने पृष्ठ हैं और मूल्य आठ आने है ।
इस पुस्तकको लिखकर हिन्दीभाषाभाषियोंका ११ भारतीय शासन । बहुत उपकार किया। इसके लिए आप धन्यवालेखक और प्रकाशक, बाबू भगवानदासजी के पात्र हैं । पुस्तकका मूल्य अपेक्षाकृत कम महेसरी, शीशमहल मेरेठ । पृष्ठ संख्या १८०। रक्खा गया है। भाषा सरल और सबके समझमें मूल्य सात आने । यह बड़े सौभाग्यकी बात है आने योग्य है । छपाई और कागज आदि सब कि हिन्दीके लेखकोंकी प्रवत्ति राजनीतिसम्बन्धी अच्छे हैं। पुस्तकें लिखनेकी ओर भी होने लगी है । यह एक
१२ नीतिशतक । ऐसा विषय है जिसका जानना प्रत्येक पढ़े लिखे भर्तृहरिका नीतिशतक संस्कृत साहित्यकी एक भारतवासीके लिए आवश्यक है । हिन्दीसमाचार- बहुत ही बहुमूल्य वस्तु है। हिन्दीमें इसके अनेक पत्रोंके पाठकोंमें फी सदी ५०-६० पाठक ऐसे गद्यपद्य अनुवाद हो चुके हैं। परन्तु जहाँ तक होंगे जो राजनीतिसम्बन्धी लेखोंको पढ़ते हैं; हम जानते हैं अभीतक इसका बोलचालकी परन्तु उनके पूरे मर्मको नहीं समझ सकते । वे नहीं भाषामें कोई पद्यानुवाद नहीं हुआ था। हिन्दीके जानते कि अँगरेज सरकार हमारे देशका शासन- सुपरिचित कवि पं० लोचनप्रसादजी पाण्डेयने इस किस ढंगपर करती है और इस कारण शासन- कमीको पूरा कर दिया । अनुवाद 'तुकहीन' है पर सम्बन्धी गुणदोषोंकी चर्चा उनके लिए कठिन हो हमें अच्छा मालूम हुआ । मूलका भाव अनुवादजाती है । इस पुस्तकसे हिन्दी पाठक अपनी में अच्छी तरह व्यक्त होता है । अच्छा होता, यदि बड़ी भारी अज्ञानताको बहुत कुछ दूर कर सकेगें। वे एक पद्य का अनुवाद अनेक पद्योंमें न करके एक जानेंगे कि विलायत सरकार ( होम-गवर्नमेंट ) क्या ही पद्यमें किया जाता । यद्यपि इसमें कठिनाई काम करती है, उसमें काम करनेवाले अधिकारी पड़ती और अनुवाद भी कुछ कठिन हो जाता
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