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जैनहितैषी।
होकर भी जैन नहीं हैं-निन्हव हैं । अतः वह दिगम्बर सम्प्रदायकी अपेक्षा श्वेताम्बर यापनीय संघके अगुआ शाकटायन भी एक सम्प्रदायसे निकटका सम्बन्ध रखता था । प्रकारके निन्हव थे।
दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायमें जो मतदेवसेनसूरिने अपने दर्शनसारमें इस संघ- मिन्नताये हैं उनमें स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्ति के आविर्भावका समय बतलाया है:- ये दो बातें मुख्य हैं । दिगम्बर सम्प्रकल्लाणे वरणयरे
दायकी मानता है कि स्त्रियोंको उसी भवमें सत्तसए पंच उत्तरे जादे। मुक्ति नहीं मिल सकती और केवलज्ञानी भोजन जावणियसंघभावो
नहीं करते । पर यापनीयसंघ इन बातोंसिरिकलसादो हु सेवडदो॥ अर्थात् कल्याण नामक नगर ( निजामके
र को श्वेताम्बर सम्प्रदायके ही समान मानता है,
अर्थात् उसकी दृष्टिसे स्त्रियाँ मुक्तिलाभ कर राज्यके अतर्गत ) में विक्रमकी मृत्यु के ७०५
सकती हैं और केवली आहार करते हैं । वर्ष बाद श्रीकलश नामके श्वेताम्बरसे यापनी
पाटणके प्राचीन जैनभण्डारमें यापनीयसंयसंघकी उत्पत्ति हुई। देवसेनसूरिने द्राविड़ आदि संघोंमें कौन
- घका एक ग्रन्थ मिला है जिसका नाम है कौन विरुद्ध बातें मान्य हैं, उनका थोड़ा
' स्त्रीमुक्तिकेवलभुक्तिप्रकरण ' और पाठकोंको थोड़ा उल्लेख किया है। परन्तु यापनीय संघके .
! यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसके सम्बन्धमें उपर्युक्त गाथाके अतिरिक्त कुछ भी
रचयिता और कोई. नहीं, शाकटायननहीं कहा । इससे यह नहीं बतलाया जा
व्याकरणके कर्ता स्वयं शाकटायन हैं । यह सकता कि यापनीय संघमें और संघोंकी
ग्रन्थ पाटणके संघवी पाड़ेके भण्डारमें ताड़पत्रों
पर लिखा हुआ है । श्रीमान् मुनिमहाशय जिनअपेक्षा क्या विशेषता है । पहले हमारा खयाल था कि जिस तरह एक दो बहुत ही
विजयजीकी कृपासे हमें इसका परिचय प्राप्त मामूली बातोंके कारण काष्ठासंघ जैनाभास
हुआ है । वे कहते हैं कि यह ग्रन्थ १२ बना दिया गया है, उसी तरह यापनीय संघ ..
1वीं शताब्दिके आसपासका लिखा हुआ है।
इसमें केवल ७९ कारिकायें हैं जिनमें ४५ भी होगा-अर्थात् यह दिगम्बरसम्प्रदायका ही एक भेद होगा । परन्तु खोज करनेसे .
स्त्रीमुक्तिविषयक और शेष ३४ केवलि
भुक्तिविषयक हैं । इनमें वे सब युक्तिहमारा यह खयाल गलत निकला । यापनीय-:
याँ दे दी गई हैं जो श्वेताम्बरोंकी ओरसे संघ यद्यपि एक स्वतंत्र संघ था, तो भी
' दिगम्बरोंके प्रति उपस्थित की जाती हैं। इसका १ दर्शनसारकी इस गाथाके पूर्वकी अन्य सब गाथाओंमें 'विक्कमरायस्प मरणपत्तस्स' पद दिया है, इसी लिए यहाँ विक्रमकी मृत्युके ७०५ वर्ष बाद प्रणिपत्य भुक्तिमुक्तिलिखा है।
प्रदममलं धर्ममहतो दिशतः।
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