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शाकटायनाचार्य ।
राजा हुआ । दामोदर साधारण राजा हुआ । हुविष्क आदि पिछले तीन राजे जातिके तातार और धर्म बौद्ध थे । इनके यहाँके राजा होने में कुछ भी सन्देह नहीं है, क्यों कि और भी कई स्थानोंमें इनका विशेष कर हुविष्क और कनिष्कका जिक्र है । कनिष्कने काश्मीरमें अश्वघोषके सभापतित्वमें बौद्ध - धर्मावलम्बियोंकी एक सभा भी की थी ।
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शाकटायन नामके दो आचार्य हो गये हैं - एक वैदिक शाकटायन और दूसरे जैन शाकटायन । ये दोनों ही वैयाकरण हैं । इनमें से पहले वैदिक शाकटायन बहुत ही प्राचीन हैं। ऋग्वेद और शुक्ल यजुर्वेद के प्रातिशाख्यमें तथा यास्काचार्यके निरुक्तमें उनका उल्लेख मिलता है । सुप्रसिद्ध पाणिनि आचार्यने अपनी अष्टाध्यायी के तीसरे और आठवें अध्यायमें शाकटायनके मतका उल्लेख किया है । पाणिनि कब हुए, इस विषयमें विद्वानोंमें मतभेद है; तथापि अधिकांश विद्वानोंकी रायमें वे ईस्वी सनसे ७००-८०० वर्ष पहले हुए हैं । अतएव शाकटायन इनसे भी पहले के- इस समयसे लगभग ३००० वर्ष पहले के - विद्वान् हैं ।
शाकटायनाचार्य |
राजतरंगिणी के अनुसार उसके सिंहासनारोहणका समय १९ वी सदी बी. सी. है । पर साधारणतया
उसका समय ९५ ए.
डी. या किसीके अनुसार १२० ए. डी. हो । उसके बाद प्रथम अभिमन्युने राजतरंगिणी के अनुसार १८९४ वी. सी. तक राज्य किया, जिसके समयमें बौद्ध धर्म काश्मीर से जड़ से उखाड़ डाला गया । (क्रमशः )
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इन वैदिक शाकटायनका कोई व्याकरण ग्रन्थ अवश्य होना चाहिए; परन्तु अभीतक उसका कहीं पता नहीं लगा ।
दूसरे शाकटायन जैन थे। इनका असली नाम पाल्यकीर्ति था; परन्तु बड़े भारी वैयाकरण होनेके कारण जान पड़ता है कि लोग इन्हें शाकटायन कहने लगे और फिर इनका यही नाम बहुत प्रसिद्ध हो गया । जिस तरह कवियों में कालिदासकी प्रसिद्धि अधिक होनेसे पीछे के कई कवि कालिदासके नामसे प्रसिद्ध हो गये थे, उसी तरह ये भी शाकटायन कहे जाने लगे। जिस समय शाकटायन व्याकरण ( शब्दानुशासन ) बना है उस समय शाकटायन,
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