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तिषी
३४२
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बदला है वहीं अपनी निकम्मी रुचिका परि- निर्मल पाठकको संस्कृतका बोध बहुत थोड़ा था। चय दिया है। यह ग्रंथ मूल जैनग्रंथसे इसी लिए उन्होंने पंचाख्यानकी कथाओंको उस बहुत निम्न श्रेणीका है।
___ रूपमें दिया है जिस रूपमें वे जनतामें प्रचलित ___ एक और संस्कृत रूपान्तर है, जिसके थीं, और जैन आवृत्तियोंमें जो रूप दिये हैं कर्ता रामचन्द्र वैष्णव हैं। यह ग्रंथ अपूर्ण उनको छोड़ दिया है । तथापि उन्होंने जैन है। इसकी प्रशस्ति रामचन्द्रके पुत्र वसुदेवने आवृत्तियोंके आधार पर अपना ग्रंथ लिखा है संवत् १८३० अर्थात् शक् १६९५ में लिखी और संभव है कि उन्होंने पंचाख्यानकी सर्व थी। यह ग्रंथ सरलावृत्तिके पहले और पाँच- साधारणमें प्रचलित जैनकथाओं जैसे उपवें तंत्रोंको और दक्षिणी पंचतंत्रके—जिसका र्युक्त पंचाख्यान वार्तिकसे भी सहायता उल्लेख ऊपर हो चुका है-चौथे और पाँचवें ली हो; क्योंकि उनकी कई कथायें जो पंचातंत्रोंको मिला कर लिखा गया है। ख्यानके प्राचीन संस्कृत रूपान्तरमें नहीं मि
प्राचीन मराठी भाषाके रूपान्तरोंमें लती हैं, पंचाख्यान वार्तिककी कथाओंसे एक रूपान्तर है जिसके कर्ताके नामका मिलती जुलती हैं। पता नहीं हैं। इस रूपान्तरकी दो आवृत्ति- यही बात निम्न लिखित आवृत्तियोंके वियाँ मिलती हैं। इन दोनोंमें संस्कृतके श्लोक षयमें, जो दक्षिणभारत, नैपाल और ब्रह्माहैं जिनमेंसे कुछ मराठी अनुवादसहित हैं आदिमें मिलती हैं, सत्य है।
और कुछ बिना अनुवादके हैं । यह ग्रंथ उत्तर-पश्चिम-भारतीय संक्षिप्त आवृत्तिको दोनों * अत्यन्त प्राचीन जैन रूपान्तरोंका जो संभवतः एक वैष्णवकी कृति है, जैनमिश्रित अनुवाद है । इस ग्रंथकी एक पंचाख्यानके भिन्न भिन्न रूपान्तरोंने उत्तर-प. आवृत्तिको शक १८२९ में विनायक लक्ष्म- श्चिमसे बहिष्कृत कर दिया। परन्तु इसकी णने इन्दुप्रकाश प्रेस बम्बई द्वारा मुद्रित एक प्रति, जिसमें बहुतसी अशद्धियाँ थीं और महाराष्ट्र-कवि-सीरीजके ३५ वें अंकसे लेकर कई स्थानोंपर पाठ छूटा हुआ था, दक्षिण ४६ वें अंक तक प्रकाशित किया था। भारतमें आई और यहाँपर उसकी बहुतसी ___ एक भागवतने, जिनका नाम निर्मल प्रतियाँ और अनुवाद हुए जो अब भी मिलते हैं। पाठक था, प्राचीन मराठी भाषामें एक ये अनुवाद तैलंग, कन्नड, तामिल, मलयालम छंदोबद्ध आवृत्ति लिखी थी । इस आवृत्तिकी और मोडी (?) भाषाओंमें हैं; और इनमें भी केवल एक प्रति, जो मैंने देखी है, लंदनकी कुछ गद्यमय हैं और कुछ छंदोबद्ध हैं। अभी इंडिया आफिस लाइब्रेरीमें है । यह स्पष्ट है कि तक इन अनुवादोंका बहुत कम हाल मालम * अर्थात् सरलावृत्ति और पूर्णभद्रकी आवृत्ति। हुआ है। परन्तु उनमें से कुछ तो दक्षिणी
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