Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 23
________________ काइमीरका इतिहास । (ले०-श्रीयुत बाबू सुपार्श्वदास गुप्त बी. ए.।) कई ऐतिहासिकोंने विशेष कर असंस्कृतज्ञ घटनाओंका हाल लिपिबद्ध करते थे । जिन यरोपियनोंने भारतवर्षके साहित्य पर यह लोगोंने महाकवि कल्हणकी राजतरंगिणी देखी निन्दनीय आक्षेप किया है कि इसके भक्तोंने है उन्हें मालूम होगा कि, उसने प्रथम अध्याइसके ऐतिहासिक अंग पर कुछ भी ध्यान यमें किस प्रकार इतिहासलेखकोंकी प्रशंसा नहीं दिया और उन्हें साहित्य लिखनेका करते हुए कई पुराने इतिहासवेत्ताओं और ढंग मालूम न था; परन्तु उनकी यह सम्मति लेखकोंका हवाला दिया है और स्थान स्थानइतिहासकी भिन्न भिन्न समयोंमें, भिन्न भिन्न पर उनके ग्रन्थोंकी समालोचना की है। कल्हपरिभाषा होनेके कारण मान्य नही हो सकती। णने वहाँ पर जो कुछ लिखा है उसका जिस प्रकार आधुनिक समयमें यूरोपवाले भावार्थ यह है:-" सच्चे कवियों ( इतिहासइतिहास लिखते हैं हमारे पूर्वज उस तरह वेत्ताओं ) की वह शक्ति प्रशंसा करने योग्य नहीं लिखा करते थे। जिन अठारह पुराणों- है जो अमृतकी धारासे भी बढ़कर है; क्यों को लोग झूठे किस्से कहानियोंका भाण्डार कि इसीके कारण उन कवियों और अन्य कह कर तिरस्कृत करते हैं उन्हींका यदि लोगोंका शरीर अमर हो जाता है। प्रजापतिका ऐतिहासिक दृष्टिसे अध्ययन किया जाय मुकाबला करनेवाले और सुन्दर ग्रन्थ लिखने और परम्परागत मिथ्या कथन जो लेखकों- वाले कवियोंके सिवा और कौन ऐसा है जो की अज्ञानतासे उनमें घुस गये हैं उनसे साधारणकी आँखोंके सामने भूतकालकी घटनानिकाल दिये जाँय तो प्राचीन भारतवर्षके ओंका चित्र खींच सकता है ! वही उच्च इइतिहासके लिए बहुतसा सामान मिल सकता विचारवाला कवि प्रशंसनीय है जिसके शब्द है। हर्षकी बात है कि भारतीय विद्वानोंका ध्यान न्यायाधीशोंके शब्दोंकी तरह पूर्वकालिक बातोंइस ओर गया है और उनके अनुसंधानोंसे के वर्णनमें प्रेम और घृणा दोनोंसे अलग रहते भारतके माथे पर अकारण लगे हुए कलंकके हैं। प्राचीन राजाओंके इतिहासविषयक मिट जानेकी बहुत कुछ आशा है। पुराने बड़े बड़े ग्रन्थ खण्डरूपमें रह गये हैं; इतना ही नहीं बल्कि, हमारे पूर्वज इति- क्योंकि सुव्रतने उसे अपनी छोटीसी पुस्तकमें हासके बड़े प्रेमी थे और इतिहासकी प्रसिद्ध इस प्रकार दूंस दिया है कि उसका आशय पक्षपात शून्यताके साथ सामयिक और विगत आसानीसे याद रह सके । यद्यपि उसकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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