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MAHABHARAMAITHILIATILLI
लुभाव या लालच ।
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तब तक बराबर लोभ मनुष्यको दबाता आकांक्षा इस बातको सूचति करती है रहेगा । अपवित्रता पर लोभका असर होता कि मनुष्यने कुछ उन्नति की है और इस है। पवित्रता पर लोभका वश नहीं चलता। लिए वह फिर नीचे गिर सकता है। इसी
_ भावका नाम जो फिर मनुष्यको ऊँचेसे नीचे ___ लोभ उस समय तक आकांक्षायुक्त उतार लाता है, लालच या लभाव ( Temptमनष्यके मार्ग बाधक रहता है जब
है। मनष्यको लभानेवाली चीज तक कि वह ईश्वरीय ज्ञानके संसारमें प्रवे- अपवित्र विचार और इन्द्रियोंके भोग विलानहीं पाता । वहाँ पहुँच कर लोभ उसका सोंकी इच्छायें होती हैं। यदि हृदयमें कामपीछा नहीं कर सकता । जब मनुष्यको की इच्छा नहीं है तो लालचका कुछ असर आकांक्षा उत्पन्न होने लगती है तभीसे वह नहीं हो सकता । लालच मनष्यके भीतर हैं लुभाया जाने लगता है । आकांक्षा मनुष्य- न कि बाहर । जब तक मनुष्यको इस बातकी बुराई और भलाई दोनोंको प्रगट कर का अनभव नहीं हो जाता लालचका समय देती है कि जिससे मनुष्यको अपनी वास्तविक बढता जाता है। जब तक मनुष्य बाहरी दशाका हाल मालूम हो जाय; कारण कि जब
१ चीजोंसे यह समझ कर बचता रहता है कि
जो यह समयक । मनुष्य अपनका अच्छा तरह नहा लालच इनमें है और अपनी अपवित्र वासजान लेता, अपनी बुराई भलाईको नहीं नाओंको नहीं त्यागता, तब तक उसका समझ लेता, तब तक वह अपने ऊपर जय लालच बढता जाय
ऊपर जय लालच बढ़ता जायगा और उसका पतन नहीं प्राप्त कर सकता । जो मनुष्य विषय होता रहेगा। जब मनुष्य इस बातको स्पष्ट वासनाआमें लिप्त हो रहा है उसके विषय- रूपसे देख लेता है कि वराई मेरे अंदर है में यह नहीं कहा जा सकता कि वह नीचे- बादा नदी तब वह उन्नति कर सकेगाकी ओर लुभाया जा रहा है। कारण कि लुभाव ही इस बातको प्रगट कर रहा है कि शीघ्र अपनी लोभकषाय पर पूर्ण जय प्राप्त वह उच्चावस्थाके लिए उद्योग कर रहा है। कर सकेगा। विषयलम्पटता उसी मनुष्यमें होती है लालच दुःखमय है परंतु यह नित्य नहीं जिसे अभी आकांक्षा भी उत्पन्न नहीं हुई है। है। यह केवल नीचेसे ऊपर जानेका मार्ग उसे केवल भोगविलासोंकी इच्छा है और है। जीवनकी पूर्णता आनंदमय है दुःखमय वह उन्हींकी प्राप्तिसे प्रसन्न होता है । ऐसा नहीं । लोभ निर्बलता और पराजयके साथ मनुष्य नीचेकी ओर नहीं लुभाया जा सकता; रहता है, परंतु मनुष्य शक्ति और विजयके कारण कि वह गिरेगा क्या, अभी अपने लिए है। दुःखकी उपस्थिति इस बातका स्थानसे उठा भी नहीं है
चिह्न है कि उन्नति की जाय । जो मनुष्य
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लालच घट जा
वहत
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