Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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[ १६ ] कुछ लिखा गया है कि यदि उसे एक जगह संगृहीत किया जाये तो वह एक विशाल पुस्तकालय का रूप ले सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक 'जनधर्म मे तप : स्वरूप और विश्लेषण' पुस्तक मेरे समक्ष है । अस्वस्थता के कारण मैं इसे पूरा-पूरा तो नही पढ पाया हूँ, फिर भी जो कुछ मैंने इधर-उधर, विखरा-विखरा देखा है, उसने मुझे प्रभावित किया है, आकर्षित किया है । तप के सम्बन्ध में दूर-दूर तक विखरी हुई सामग्री को एकत्र संकलन करना आसान नहीं है । किन्तु मैं देखता हू, प्रस्तुत पुस्तक मे उस सामग्री का काफी अच्छा संकलन एवं विवेचन किया गया है । जिज्ञासु साधक को एक ही पुस्तक मे वह सब कुछ मिल जाता है, जो वह 'तप' के मम्बन्ध में जानना चाहता है । और यह केवल सकलन ही नहीं है, बीच-बीच मे तप के सम्बन्ध मे वह बौद्धिक चिन्तन भी है, जो तप सम्बन्धी कितनी ही गूढ-ग्रन्थियो को खोलता है, और तप के अन्तर मर्म को उद्घाटित करता है, उजागर करता है। प्रस्तुत पुस्तक के द्वारा श्रद्धेय मरुधर केसरी जी म. ने एक बहुत बडे अभाव की, एक बहुत बडी आवश्यकता की पूर्ति की है, एतदर्थ वे शतश धन्यवाद के पात्र हैं ।
श्रद्धेय मन्धर केसरी जी जैनपरम्परा के एक जाने-माने सुप्रसिद्ध सत हैं । चे वस्तुत केसरी हैं, वन के नही, मन के । उनका अत्तर्मन इतना दीप्तिमान है कि जिनशासन की शोभा एव सेवा के लिए वह हजार-हजार किरणो के साथ प्रदीप्त रहता है । उनकी वाणी मे वह मोज है, जो श्रोताओ के अन्तर्मन को झकझोर देता है । वे एक महान निर्भीक प्रवक्ता है । उन्होने राजस्थान को मगधरा मे जिनशासन को गौरवशाली बनाने मे जो महान कार्य किये हैं, और एतदर्थ अनेक संस्थाओ को पालित-पोपित किया है, वे युग-युग तक उनको गोरव गाथा के प्रतीक रहेंगे।
जैसा कि सुना है, आज अस्पी वर्ष की दीर्घ आयु में भी, जबकि मनुष्य का तन ही नहीं, मन भी जर्जर हो जाता है, उत्माह क्षीण हो जाता है, तव भी हम देगते हैं कि श्री मम्धरकेनगे जी अभी युवा हैं, तन बूढा हो चला