________________ पर्याय की अवधारणा व स्वरूप 53 दूसरे शब्दों में पर्याय के बिना वस्तु का और वस्तु के बिना पर्याय का विचार नहीं किया जा सकता / जिसमें गुण वसते हैं, उसे वस्तु कहते हैं / प्रत्येक पदार्थ सत्तावान् और स्वतन्त्र है / द्रव्य सत्तारूप है, गुण सत्तारूप हैं और पर्याय सत्तारूप हैं / इस प्रकार सत्ता का विस्तार है / परन्तु तीनों में द्रव्य, गुण, पर्याय की एकता का परस्पर में अभाव है। जैसे एक मोती की माला हार, सूत्र और मोती इन भेदों से तीन प्रकार की है, उसी प्रकार एक पदार्थ द्रव्य, गुण और पर्याय के भेद से तीन प्रकार का है। जैसे मोती की माला में शुक्ल गुण, श्वेत हार तथा सफेद धागा और शुक्ल मोती की भिन्नता से भेद देखा जाता है, वैसे ही द्रव्य, गुण और पर्याय में सत्ता का विस्तार होने से भिन्नता है / अतः मोती की माला में जो श्वेत गुण है सो हार नहीं है, सूत्र नहीं है और मोती नहीं है। उनमें परस्पर भेद है / इसी प्रकार एक द्रव्य में जो सत्ता गुण है वह द्रव्य नहीं, गुण नहीं और पर्याय नहीं है तथा जो द्रव्य, गुण और पर्याय है सो सत्ता नहीं हैं / इस प्रकार परस्पर भेद हैं / यह भेद स्वरूप से है। जैसे द्रव्य स्वतन्त्र है, गुण स्वतन्त्र है, वैसे पर्याय भी स्वतन्त्र है / वह एक समय का सत् है / इसीलिए इनमें अन्यत्व भेद व्यवहार से कहा जाता है; न कि द्रव्य का अभाव गुण है और गुण का अभाव द्रव्य है-ऐसा अभावरूप भेद नहीं है / भेद जो कहा गया है, वह गुण-गुणी में भिन्नता होने से अन्यत्व-भेद है; सर्वथा अभावरूप भेद नहीं है। इसे दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि इनमें दो द्रव्यों जैसी भिन्नता नहीं है, क्योंकि इनमें प्रदेश-भेद का अभाव है। अतः इसे पृथकत्व का निषेध कहते हैं; परन्तु इनमें तद्-अभावरूप मिलता है, क्योंकि संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजन आदि की अपेक्षा से इनमें भेद है। इसको अन्यत्व का समर्थन कहते हैं। द्रव्य, गुण, पर्याय इन तीनों के नाम अलग-अलग होने से संज्ञा-भेद है / द्रव्य एक है, गुण अनन्त हैं, पर्यायें अन्तानन्त हैं, इसलिए संख्या-भेद है / द्रव्य का जो लक्षण कहा गया है, वहीं गुण और पर्याय का लक्षण नहीं है, अतः यह लक्षण-भेद है। इनका प्रयोजन है - गुण-पर्यायों का भेद किए बिना अखण्ड एक वस्तु का ज्ञान कराना / शुद्ध द्रव्य आश्रय करने योग्य उपादेय है, यह द्रव्य का प्रयोजन है। द्रव्य की महिमा प्रकट कर कहना यह गुण का प्रयोजन है और द्रव्य-गुणों के कार्य बताना यह पदार्थ का प्रयोजन है। इस प्रकार तीनों में प्रयोजन-भेद है। सारांश यह है कि इन तीनों में गुण-गुणी भेद है, परन्तु प्रदेशभेद नहीं / तथा सत्ता के स्वरूप का अभाव द्रव्य, गुण, पर्यायों में है और द्रव्य, गुण, पर्याय के स्वरूप का अभाव सत्ता में है। इस प्रकार एक द्रव्य में जो द्रव्य है वह गुण नहीं है और जो गुण है वह द्रव्य नहीं है। द्रव्य का लक्षण - गुण और पर्यायवान् को द्रव्य कहते हैं / जिसमें गुण और पर्याय होते हैं, वह द्रव्य है। प्रत्येक द्रव्य का परिणमन-स्वभाव है। वस्तु का स्वभाव परिणाम वस्तु से अभिन्न किंवा एक रूप है / परिणाम का शब्दार्थ पर्याय है। पर्याय के बिना कोई द्रव्य नहीं होता है, क्योंकि ऐसा नियम है कि कोई भी द्रव्य किसी भी समय में परिणमन किए बिना नहीं रहता / 12 जैसे दूध, दही, तक्र, नवनीत, घी आदि गोरस के परिणाम हैं / इन परिणामों के बिना गोरस भिन्न नहीं पाया जाता / जहाँ ये परिणाम नहीं है, वहाँ गोरस की सत्ता नहीं है / वास्तव में द्रव्य के बिना परिणाम नहीं होता / क्योंकि परिणाम का आधार द्रव्य है / यदि द्रव्य न हो, तो परिणाम किसके आश्रय से रहे / यदि गोरस नहीं है, तो दूध,