Book Title: Jain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Author(s): Siddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 144
________________ 14 पर्याय मात्र को ग्रहण करने वाला नय : ऋजुसूत्रनय अनेकान्त कुमार जैन जैन दर्शन में वस्तु को समझने व समझाने की दृष्टि से अभिप्राय को ग्रहण करने वाला सिद्धान्त 'नय' कहलाता है। तत्त्वार्थसूत्र में इसके सात भेद माने गये हैं / वे सात प्रकार हैं - नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढ़नय, एवम्भूतनय / इनमें आरम्भ के तीन नय द्रव्य को विषय करते हैं, इसलिए द्रव्यार्थिक नय तथा शेष चार पर्याय को ग्रहण करते हैं, इसलिए पर्यायार्थिक नय कहलाते हैं / इन सातों नयों के विषय उत्तरोत्तर क्रमशः सूक्ष्म होते चले जाते हैं। इनमें मुख्य रूप से पर्याय को अपना विषय करने वाला ऋजुसूत्रनय कहलाता है। वस्तु का स्वरूप सामान्य विशेषात्मक है / द्रव्याथिक नय सामान्य को ग्रहण करता है और पर्यायार्थिक नय विशेष को ग्रहण करता है / संग्रहण और व्यवहार नय द्रव्यार्थिक नय हैं / ये दोनों नय सामान्य में द्वैत बतलाते हुए उस अन्तिम विशेष तक ले जाते हैं, जिसके बाद द्वैत अद्वैत संभव ही न हो / इस अंतिम विशेष से पूर्व के सभी विशेषों को संग्रह नय तो अद्वैत रूप से ग्रहण कर लेता है और व्यवहार नय आगे-आगे द्वैत करता जाता है। किन्तु यह अंतिम विशेष न तो संग्रहनय का विषय बन सकता है और न ही व्यवहार नय का, क्योंकि जहा द्वैत ही संभव नहीं, वहा अद्वैत भी कैसे देखा जा सकेगा? यह विशेष या अंश ही पर्यायार्थिक नय का विषय है, जिसे ऋजुसूत्रनय ग्रहण करता है। अद्वैताग्राही संग्रहनय के साथ तो द्वैतग्राही व्यवहार नय रहता है, किन्तु पूर्ण एकत्व गत विशेष ग्राही ऋजुसूत्रनय के साथ अन्य कोई नहीं रहता, क्योंकि अद्वैत में द्वैत रहता हैं, सामान्य में विशेष रहता है किन्तु विशेष में अन्यविशेष नहीं / इसीलिए द्रव्यार्थिक नय का विषय द्वैत अद्वैत है तथा पर्यायार्थिक नय का विषय एकत्व है। अत: ऋजुसूत्र एकत्वग्राही है / ऋजुसूत्रनय का लक्षण ___अनुयोगद्वार सूत्र के अनुसार ऋजुसूत्रनयविधि-प्रत्युन्नग्राही (वर्तमान-प्रभावी पर्याय को ग्रहण करने वाली) जानना चाहिए / विशेषावश्यक भाष्यकार की भी यही मान्यता है / वाचक उमास्वाति के

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