Book Title: Jain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Author(s): Siddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 151
________________ पर्याय मात्र को ग्रहण करने वाला नय : ऋजुसूत्रनय 141 20. मूलणिमेणं पज्जवणयस्य उज्जुसुयवयणविच्छेदो / तस्य उ सद्दाईआ साहपसाहा सुहुमभेया // - सन्मतिप्रकरण, 1/5, पृ०३ 21. तुलनीय, सन्मतिप्रकरण, गा.१/५ पर पं० सुखलालजी का विवेचन, पृ०४ 22. उजुसुदो दुविहो सुदो असुदो चेदि / - धवला, पुस्तक - 9, 4/1/49 कदिअणियोगद्वारे णयविभासणदा, पृ.२४४ अपि च ऋजुसूत्रोपि द्विविधः / आलापपद्धति, सूत्र-७३, पृ०१२६. 23. तत्थ सुदो विसईकयअत्थपज्जाओ पडिक्खणं विवट्टमाणासेसत्थो अप्पणोविसयादो ओसारिदसारिच्छ तबभावलक्खणसामण्णो / - धवला, पुस्तक - 9, 4/1/49, कदि अणियोगद्वारे णयविभासणदा, पृ०२४४ 24. य एक समयवर्तिनं गृह्याति द्रव्ये धुवत्वपर्यायम् / स: ऋजुसूत्रः सूक्ष्मः सर्वः शब्दो यथाक्षणिकः / - वृहन्नयचक्र, श्लोक - 211 25. सूक्ष्मणुसूत्रो यथा एकसमयावस्थायी पर्याय / - आलापपद्धति, सूत्र-७४, पृ०१२७ 26. द्रव्ये गृह्याति पर्यायं ध्रुवं समयमात्रिकं / ऋजुसूत्राभिधः सूक्ष्मः स सर्व क्षणिकं यथा / - श्रुतभवनदीपकनयचक्र, पृ०४२ 27. प्रतिसमय प्रवर्तमानार्थपर्याये वस्तुपरिणमनमित्येषः सूक्ष्मऋजुसूत्र नयो भवति / अर्थपर्यायापेक्षया समयमात्रं / - वही, पृ०१६, 17 28. जो एयसमयवट्टी गेण्हइ दव्वे धुवत्तपंजायं / सो रिउसतो सहमो सव्वंपि सदं जहा खणियं // - माइल्लधवलनयचक्र, गा०२१०, पृ०११३ 29. तत्थ जो सो असुद्धो उजुसुदणओ सो चक्खुपासियवेंजणपज्जयविसओ / तेसि कालो जहण्णेण अंतोमुत्तमुक्कस्सेण छम्मासा संखेज्जा वासाणि वा / कुदो ? चक्खिंदियगेज्झवेजणपज्जायाणमप्पहाणीभददव्वाणमेत्तियं कालभवटठाणुवलंभादो / - धवला, पुस्तक-९, 4/1/49 कदिअणुयोगद्दारे नयविभसाणदा पृ०२४४ 30. मनुजादिपर्यायः मनुष्य इति स्वकस्थितिषु वर्तमानः / / यो भणति तावत्कालं स स्थूलो भवति ऋजुसूत्रः // - वृहन्नयचक्र, श्लोक-२१२ 31. स्थूलर्जुसूत्रो यथा मनुष्यादिपर्यायास्तदायुः प्रमाणकालंतिष्ठन्ति / - आलापद्धति, सूत्र-७५, पृ०१२७ 32. यो नरादिकपर्यायं स्वकीयस्थितिवर्तनं / तावत्कालं तथा चष्टे स्थूलाख्यऋजुसूत्रकः // - श्रुतभवनदीपकनयचक्र, पृ०४२ 33. नरनारकादिघटपटादिव्यञ्जनपर्यायेषु जीवपुद्गलाभिधानरूपवस्तूनि परिणतानीति स्थूलऋजुसूत्रनयः / व्यञ्जनपर्यायपेक्षया प्रारम्भतः प्रारभ्य अवसान यावद्भवतीति निश्चयः कर्त्तव्य इति तात्पर्य / - वही, पृ०१६, 17 34. मणुवाइयइपजाओ मणुसोत्ति सट्ठिदीसु वटुंतो। जो भणइ तावकालं सो थूलो होइ रिउसुत्तो ॥-नयचक्र, गाथा-२११, पृ०११३

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