Book Title: Jain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Author(s): Siddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 183
________________ पर्यायाधिकार 173 अपनी अशुद्ध दशा को करने की साधना करता हुआ आंशिक शुद्ध दशा को स्पर्श कर सकता है। वहाँ आंशिक शुद्ध में ही स्वभाव व विभाव दोनों सम्भव हैं, केवल शुद्ध या केवल अशुद्ध में नहीं / 67. अर्हन्त भगवान व सम्यग्दृष्टि में कितनी-कितनी पर्याय हैं ? दोनों में तीन-तीन प्रकार की पर्याय होती हैं - विभाव व्यञ्जन तथा स्वभाव व विभाव अर्थ पर्याय; क्योंकि अल्त भगवान के भावात्मक अंश या उपयोग शुद्ध हो जाने पर भी द्रव्यात्मक भाव अशुद्ध है, जिसके कारण कि उन्हें योगों का सद्भाव बर्तता है / 68. सिद्ध भगवान में कितनी पर्याय हैं ? केवल दो-स्वभाव व्यञ्जन व स्वभाव अर्थ / 69. सिद्ध भगवान की व्यञ्जन पर्याय कैसी होती है ? अन्तिम शरीर से किंचित् न्यून / 70. क्या कोई सिद्ध, गाय के आकार के भी होते हैं ? सिद्ध पुरुषाकार ही होते हैं, अन्य किसी आकार के नहीं, क्योंकि अन्य पर्याय से मुक्ति सम्भव नहीं, स्त्री पर्याय से भी नहीं / 71. ऐसे द्रव्य बताओ जिनकी व्यञ्जन पर्याय समान हो ? केवल समुद्घातगत अहँत, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, इन तीनों की व्यञ्जन पर्याय लोकाकाश प्रमाण है। कालाणु व परमाणु दोनों की व्यञ्जन पर्याय अणुरूप है / सबसे बड़ी व सबसे छोटी व्यञ्जन पर्याय किसकी ? आकाश की सबसे बड़ी और कालाणु व परमाणु की सबसे छोटी / 73. व्यञ्जन व अर्थ पर्याय में परस्पर क्या सम्बन्ध ? व्यञ्जन पर्याय शुद्ध होने पर तो सभी अर्थ पर्याय भी अवश्य शुद्ध होगी, जैसे सिद्ध भगवान / परन्तु अर्थ पर्याय शुद्ध होने पर व्यञ्जन पर्याय शुद्ध हो अथवा न भी हो; जैसे अहँत / 74. अर्थ पर्याय के शुद्ध होने पर व्यञ्जन पर्याय को भी शुद्ध होना पड़े क्या यह ठीक है? नहीं, जीव में सम्यक्त्वादि गुणों की अर्थ पर्याय शुद्ध होने पर भी व्यञ्जन पर्याय अशुद्ध रह सकती है। 75. बड़ी व्यञ्जन पर्याय में अधिक पर्याय समा सकती है ? नहीं, व्यञ्जन पर्याय के छोटे व बड़े होने से, अर्थ पर्याय की संख्या में अन्तर नहीं पड़ता, क्योंकि सभी पर्याय द्रव्य के सर्व क्षेत्र में व्यापकर एक साथ रहती हैं / 72.

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