Book Title: Jain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Author(s): Siddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 184
________________ 174 जैन धर्म में पर्याय की अवधारणा 76. ज्ञान गुण की कितनी पर्याय होती हैं ? मति, श्रुत, अवधि व मनःपर्याय से चारों विभाव अर्थ पर्याय हैं और केवल ज्ञान स्वभाव अर्थ पर्याय / 77. रूप-रस-गन्ध व स्पर्श वर्ण की कितनी-कितनी पर्याय होती हैं ? रूप गुण की पाँच - काला, पीला, लाल, नीला, सफेद; रस गुण की पाँच - खट्टा, मीठा, कडुवा, कसैला, चरपरा; गन्ध गुण की दो - सुगन्ध, दुर्गन्ध स्पर्श गुण की आठ - ठण्डा-गर्म, चिकना-रूखा, हल्का-भारी, कठोर-नर्म / 78. रूप-रस-आदि की स्वभाव व विभाव पर्याय क्या होती हैं ? उपरोक्त सर्व पर्याय विभाव हैं / उन गुणों की स्वभाव पर्याय स्वत्व योग्य कुछ होती अवश्य हैं, पर सूक्ष्म होने से केवल ज्ञान गम्य है, छद्मस्थ ज्ञान गम्य नहीं / वे परमाणु में ही होती हैं। 79. परमाणु में एक समय कितनी पर्याय होती हैं ? ___ पाँच-रूप, रस, गन्ध-पर्यायों में एक-एक तथा स्पर्श की दो पर्याय / ये सभी वहाँ स्वभाव रूप सूक्ष्म होती हैं। परमाणु में हल्का भारी तथा कठोर नर्म क्यों नहीं ? क्योंकि वे स्कन्ध के ही धर्म हैं / स्कन्ध में एक समय में कितनी पर्याय होती हैं ? सात-रूप, रस, गन्ध की एक-एक और स्पर्श की चार युगल पर्यायों में से एक-एक कर कोई सी चार; जैसे ठण्डा-गर्म युगल में से कोई एक, चिकने-रुखे में से कोई एक / ये सभी विभाव रूप होती हैं। 82. 'शब्द' क्या है ? पुद्गल द्रव्य की विभाव पर्याय है, क्योंकि स्कन्ध के प्रदेशों में परिस्पन्दन रूप से होती है, परमाणु में नहीं। 83 आकार को द्रव्य पर्याय क्यों कहा ? क्योंकि पदार्थ के प्रदेशात्म विभाग को द्रव्य कहते हैं, इसलिए उसकी पर्याय को द्रव्य पर्याय कहना ठीक ही है। 80. 1.

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