Book Title: Jain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Author(s): Siddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 176
________________ जैन धर्म में पर्याय की अवधारणा 2. द्रव्य व गुण-पर्याय 6. क्रमभावी पर्याय कितने प्रकार की होती हैं ? दो प्रकार की-द्रव्य पर्याय व गुण पर्याय 7. द्रव्य पर्याय किसे कहते हैं ? अनेक द्रव्यों में एकता की प्रतिपत्ति को द्रव्य पर्याय कहते हैं / 8. अनेक द्रव्यों में एकता की प्रतिपत्ति क्या ? अनेक द्रव्यों के मिलकर परस्पर एकमेक हो जाने से जो संयोगी द्रव्य बनता है, उसे एक द्रव्यरूप ग्रहण करना ही अनेकता में एकता की प्रतिपत्ति है; जैसे ताम्बे व जस्ते के संयोग से उत्पन्न एक पीतल नाम का द्रव्य / 9. द्रव्य पर्याय कितने प्रकार की होती हैं ? दो प्रकार की - एक समान जातीय दूसरी असमान जातीय / 10. समान जातीय द्रव्य पर्याय किसे कहते हैं ? अनेक परमाणुओं के संयोग से उत्पन्न स्कन्ध समान जातीय द्रव्य पर्याय हैं; क्योंकि उसके कारणभूत मूल परमाणु सब एक ही पुद्गल जाति के हैं। असमान जातीय द्रव्य पर्याय किसे कहते हैं ? जीव पुद्गल के संयोग से उत्पन्न नर, नारकादि पर्यायें असमान जातीय द्रव्य पर्याय हैं, क्योंकि उसके कारणभूत मूल जीव व पुद्गल भिन्न जातीय द्रव्य हैं / __ अन्य प्रकार के द्रव्य पर्याय किसे कहते हैं ? द्रव्य के आकार की अवस्थाओं को अथवा उसकी गमनागमन रूप क्रिया को अथवा प्रदेश परिस्पन्दन को द्रव्य पर्याय कहते हैं। 13. आकार आदि को द्रव्य पर्याय कैसे कहते हैं ? क्योंकि गुणों का आश्रयभूत द्रव्य क्षेत्रात्मक है, इसलिए उसके क्षेत्र या प्रदेशों की सर्व अवस्थायें द्रव्य पर्यायें कहलायेंगी, भले ही वह उनकी रचना विशेष हो या क्रिया व परिस्पन्दन / 14. द्रव्य पर्याय कितने प्रकार के होती हैं ? दो प्रकार की स्वभाव द्रव्य पर्याय व विभाव द्रव्य पर्याय 1.

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